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    धर्मों ने धर्म की हत्या कर दी - ओशो

     

    Religions killed religion - Osho


    धर्मों ने धर्म की हत्या कर दी - ओशो 

    प्रश्न -  मैं आपके पुराने परिचित स्वर्गीय प्रोफेसर लाली प्रसाद श्रीवास्तव, जिन्हें आप लल्लू बाबू के नाम से पुकारते थे, उनका पुत्र हूं। मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि आप धर्मों के खिलाफ क्यों बोलते हैं?

    प्रोफेसर काली प्रसाद श्रीवास्तव, मुझे भलीभांति याद है लल्लू बाबू की। और मुझे याद है तुम्हारी भी, तब तुम छोटे थे। मगर मैंने यह न सोचा था कि तुम अब भी उतने ही, वहीं के वहीं, वही छोटा पाजामा पहने हुए हो, वही कमीज, अभी तक वहीं बंधे होओगे। तुम्हें शायद पता हो या न हो, भूल गए भी होओ अब यह हो सकता है, लल्लू बाबू के बेटे थे तुम, इसलिए तुम्हें हम 'लल्लू के पट्टे' कहते थे। अब मतलब तुम समझ लो कि लल्लू के पट्टे का मतलब क्या होता है! मतलब लल्लू को कोष्ठक में तुम पढ़ लेना कि क्या कहते हैं। तुम अभी भी वहीं मालूम होते हो। प्रश्न भी पूछा तो क्या पूछा कि आप धर्मों के खिलाफ क्यों बोलते हैं! अभी-अभी बोला, वह धर्म के खिलाफ था? धर्मों के खिलाफ बोलता हूं, क्योंकि धर्म के पक्ष में हूं मैं। धर्म का बहुवचन हो ही नहीं सकता। धर्म का एकवचन ही हो सकता है। इसलिए धर्म पर कोई विशेषण नहीं हो सकते-- हिंदू, मुसलमान, ईसाई, जैन, बौद्ध। इनके खिलाफ मैं बोलूंगा। और इनके खिलाफ मैं अपनी छुरी पर रोज धार रखता हूं। खाली समय में वही काम करता हूं--छुरी पर धार रखता हूं। ये विशेषण काट डालने हैं। तब जो बच रहेगा, वह धर्म होगा, धार्मिकता होगी। धर्मों के खिलाफ बोलता हूं, क्योंकि धर्म से मुझे प्रेम है। और धर्मों ने धर्म की हत्या कर दी।

    - ओशो 

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