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    जिसे आना था वह तुम्हारे भीतर मौजूद है - ओशो

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    जिसे आना था वह तुम्हारे भीतर मौजूद है - ओशो 

    किसका इंतजार कर रहे हो? कोई आने वाला नहीं। किसका इंतजार कर रहे हो? जिसे आना था वह तुम्हारे भीतर मौजूद है। किसकी प्रतीक्षा में बैठे हो? जो आना था आ ही गया है--तुम्हारे साथ ही आया है। जिसे तुम खोज रहे हो वह खोजने वाले में छिपा है। इसे उससे कहीं और खोजा नहीं जा सकता। जो अपने में डूबेगा, जो अपने में उतरेगा, जो अपने में ठहरेगा, वही उसे पाने में समर्थ होता है। हां, जो पा लेता है, बता भी नहीं सकता कि क्या पाया। गूंगे का गुड़ हो जाता है। कहना भी चाहे तो कह नहीं सकता। कहना चाहा है। जिसने पाया है उसने कहना चाहा है। मगर बात अनकही ही रह गई। कोई शास्त्र नहीं कह पाया। कोई शास्त्र कभी कह भी नहीं पाएगा। यह असंभव है। क्योंकि जो निशब्द में अनुभव होता है, शब्द उसे कैसे प्रकट करेंगे? जो मौन में पाया जाता है उसे भाषा में कैसे अनुवाद किया जा सकता है? इसीलिए सत्संग का मूल्य है। सत्संग का अर्थ इतना ही है कि जिसे मिला हो, जो पहुंच गया हो, उसके पास बैठने की कला; उसके पास चुपचाप मौजूद होने का ढंग, शैली; उसकी आंखों में झांकने की कला। उसके पास, उसकी उपस्थिति में कुछ घट सकता है। घटेगा तो तुम्हारे भीतर। लेकिन उसकी उपस्थिति, जो तुम्हारे भीतर सोया है उसे जगाने के लिए बहाना बन सकती है।

    - ओशो 

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