सत्य विवाद की बात नहीं, अनुभव की बात है - ओशो
सत्य विवाद की बात नहीं, अनुभव की बात है - ओशो
ऐसा भी गीत है जो खुद तो सुना जाता है--खुद सुन सकू मगर न किसी को सुना सकू--नहीं सुनाया जा सकता, मगर फिर भी मौन में संवादित होता है। एक ऐसा भी संगीत है जो वीणा पर नहीं बजाया जाता; जिसके लिए किसी साज की कोई जरूरत नहीं है। एक ऐसा भी संगीत है जो आत्मा में बजता है, और जो भी मौन है, जो भी तैयार है उसे अंगीकार करने को, जो भी उसके स्वागत के लिए उत्सुक है, जो भी उसे पी जाने को राजी है, उसके भीतर भी बज उठता है। बात हृदय से हृदय तक हो जाती है; कही नहीं जाती, सुनी नहीं जाती। पलटू का सूत्र प्यारा है: बहतेरे हैं घाट। इसलिए लड़ना मत, झगड़ना मत, विवाद में न पड़ना, तर्क के ऊहापोह में न उलझना। मत फिकर करना कि क्या ठीक है और क्या गलत। तुम्हारी प्रीति को जो रुच जाए, तुम्हारे प्रेम को जो भा जाए, उस पर चल पड़ना।
विवाद अटका लेता है, उलझा लेता है--इसी घाट पर। और विवाद तुम्हारे मन को इतने विरोधाभासी विचारों से भर देता है कि चलना मुश्किल हो जाता है। क्या ठीक है? लोग मुझसे पूछते हैं कि हम कैसे चल पड़ें जब तक तय न हो जाए कि क्या ठीक है? यह तय कैसे होगा कि क्या ठीक है? इसको तय करने का कोई उपाय नहीं। यह तो अनुभव से ही निर्णीत होगा। यह तो अंत में तय होगा, प्रथम तय नहीं हो सकता। मगर उनकी बात भी सोचने जैसी तो है। सभी का सवाल वही है--कैसे चल पड़ें जब तक तय न हो? और जब तक चल न पड़ोगे, कभी तय न होगा। तो स्वभावतः जिन्होंने सोच रखा है तय हो जाएगा, तर्क से सिद्ध हो जाएगा तभी चलेंगे, वे कभी नहीं चलेंगे। वे यहीं अटके रहेंगे। वे विवाद में ही पड़े रहेंगे। विवाद और विवाद पैदा करता है। विवाद धुआं पैदा करता है। आंखें और मुश्किल से देखने में...वैसे ही देखने में असमर्थ थीं, और भी असमर्थ हो जाती हैं। सत्य विवाद की बात नहीं, अनुभव की बात है। इसलिए किसी भी घाट से उतर जाओ और किसी भी नाव से उतर जाओ, निर्णय अंत में होगा। और यह बेहतर है कि चाहे भटकना पड़े तो भटक जाओ, मगर घाट पर मत रुके रहो। क्योंकि भटकने वाला भी सीखेगा। अगर आज नाव गलत गई, अगर आज गलत यात्रा में गया, आज गलत दिशा में गया, तो कल ठीक दिशा में जा सकता है। आदमी भूलों से सीखता है। लेकिन जो भूल करने से भी डरते हैं उनके जीवन में तो सीख कभी पैदा नहीं होती। जो इतने होशियार हैं कि जब सब तरह से तय हो जाएगा, सौ प्रतिशत निर्णय हो जाएगा तभी चलेंगे, वे कभी नहीं चल पाएंगे।
- ओशो
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