आदमी का अहंकार अपने लिए नए रास्ते खोज लेता है - ओशो
आदमी का अहंकार अपने लिए नए रास्ते खोज लेता है - ओशो
एक आदमी पेरिस विश्वविद्यालय में फिलासफी का प्रोफेसर था। और उसकी बात मुझे इतनी प्रीतिकर लगती है। एक दिन सुबह ही आकर उसने अपनी क्लास के विद्यार्थियों को कहा कि तुम्हें कुछ खबर मिली, मुझसे बड़ा आदमी इस दुनिया में दूसरा नहीं है। विद्यार्थी समझे कि दिमाग खराब हो गया। एक तो फिलासफी की तरफ दिमाग खराब लोग ही उत्सुक होते हैं और इनका डर रहता ही है कि कभी भी दिमाग खराब हो जाए। असल में जो दिमाग से काम करेगा उसी के तो खराब होने का डर रहता है। जो दिमाग से काम ही नहीं करेंगे उनका खराब कैसे होगा। लड़के समझे कि दिमाग गड़बड़ हो गया, बेचारा गरीब प्रोफेसर है, ये दुनिया का सबसे बड़ा आदमी कैसे हो गया।
राजनीतिज्ञ अगर दुनिया में कहते फिरते हैं कि हमसे बड़ा कोई भी नहीं है तो कोई नहीं फिक्र करता उनकी, । क्योंकि उनका दिमाग खराब होता ही है। लेकिन दर्शनशास्त्र का प्रोफेसर कहने लगे! तो लड़कों ने पूछा कि आप कह रहे हैं यह! आप दुनिया के सबसे बड़े आदमी हैं? उसने कहा, न मैं केवल कह रहा हूं, मैं सिद्ध कर सकता हूं। क्योंकि मैं बिना सिद्ध किए कोई बात कहता ही नहीं हूं। उन्होंने कहा, तो आप कृपा करें और सिद्ध कर दें। लड़कों को बहुत कठिनाई थी कि वह कैसे सिद्ध करेगा! लेकिन उन्हें पता नहीं, उस प्रोफेसर ने बड़ा व्यंग्य किया, बड़ा मजाक किया। दुनिया में कुछ अच्छे लोग बड़े व्यंग्य कर जाते हैं, लेकिन फिर भी हमें पता नहीं चलता। उस आदमी ने, उस प्रोफेसर ने उठ कर बोर्ड पर गया जहां दुनिया का नक्शा लटका हुआ था। और विद्यार्थियों को कहा कि इस बड़ी दुनिया में सबसे श्रेष्ठ देश कौन-सा है? सभी फ्रांस के रहने वाले थे, उन्होंने कहा, फ्रांस।
स्वभावतः, फ्रांस में रहने वाला आदमी यही समझता है कि फ्रांस सबसे बड़ा देश है, क्योंकि फ्रांस में रहने वाला यह कैसे मान सकता है कि जहां वह रहता है वह देश बड़ा न हो! जहां वह रहता है वह देश तो बड़ा होना ही चाहिए। इतना बड़ा आदमी जहां रहता है! फ्रांस सबसे बड़ा देश है। उस प्रोफेसर ने कहा, तो फिर बाकी दुनिया की बात खत्म हो गई। अब अगर मैं सिद्ध कर दूं कि फ्रांस में मैं सबसे बड़ा हूं तो मैं सिद्ध हो जाऊंगा कि दुनिया में सबसे बड़ा हूं।
तब भी विद्यार्थी नहीं समझ पाए कि वह कहां ले जा रहा है। फिर उसने कहा कि फ्रांस में सबसे श्रेष्ठ नगर कौन-सा है? तब विद्यार्थियों को शक हुआ। वे सभी पेरिस के रहने वाले थे। उन्होंने कहा, पेरिस। तब उन्हें थोड़ा शक हुआ कि मामला गड़बड़ हुआ जा रहा है। उस प्रोफेसर ने कहा, और पेरिस में सबसे श्रेष्ठ स्थान कौन-सा है? निश्चित ही, विद्या का केंद्र, विश्वविद्यालय, युनिवर्सिटी। तो उसने कहा, अब युनिवर्सिटी ही रह गई सिर्फ। और युनिवर्सिटी में सबसे श्रेष्ठ सब्जेक्ट, सबसे बड़ा विषय कौन-सा है? फिलासफी, दर्शनशास्त्र।
और उसने कहा, मैं दर्शनशास्त्र का हेड ऑफ दि डिपार्टमेंट हूं। मैं इस दुनिया का सबसे बड़ा आदमी हूं! आदमी का अहंकार कैसे-कैसे रास्ते खोजता है! जब आप कहते हैं, हिंदू धर्म सबसे बड़ा है तो भूल कर यह मत सोचना कि आपको हिंदू धर्म से कोई मतलब है, आपको मतलब खुद से है। आप हिंदू हैं और हिंदू धर्म को महान कह कर अपने को महान कहने की तरकीब खोज रहे हैं। और जब आप कहते हैं कि हमारा भगवान सबसे बड़ा और हमारा महात्मा सबसे बड़ा, तो आपको न भगवान से कोई मतलब है, न महात्मा से कोई मतलब है। आप कहते हैं कि मेरा महात्मा, मैं इतना बड़ा आदमी हूं कि मेरा महात्मा छोटा कैसे हो सकता है? यह जो दुनिया में झगड़ा है हिंदू-मुसलमान का, ईसाई का, जैन का, बौद्ध का, सिक्ख का, यह झगड़ा महात्माओं का झगड़ा नहीं है, यह महात्माओं के आधार पर बड़े होने वाले लोगों के अहंकार का झगड़ा है। इसलिए जब अगर मैं कहूं कि महात्मा गांधी को नीचे लाना है, नहीं ले जाना है स्वर्ग पर, वे पृथ्वी के बड़े काम के हैं; उनकी जड़ें पृथ्वी में ही रखना है, नहीं ले जाना है स्वर्ग में। जब मैं कहूं महावीर को पृथ्वी से जोड़ना है, तो हमें बड़ा कष्ट होता है। क्योंकि हम उनको आकाश में समझ कर अपने को भी आकाश में समझने का जो सपना देख रहे थे वह टूट जाता है।
- ओशो
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