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    बोधिधर्म और दीवाल - ओशो

     

    Bodhidharma and the Wall - Osho

    बोधिधर्म और दीवाल - ओशो 

            बोधिधर्म के संबंध में यह प्रसिद्ध है कि वह नौ साल तक दीवाल के सामने बैठा देखता रहा। और दीवाल को देखते-देखते ही परम संबोधि को उपलब्ध हुआ। बहुतेरे हैं घाट! अब यह तुमने कभी सोचा भी नहीं होगा कि दीवाल को देखते-देखते भी कोई परम संबोधि को उपलब्ध हो सकता है। मगर यह बात तो साफ मालूम पड़ती है कि नौ साल तक अगर कोई दीवाल को ही देखेगा तो बात कब तक चलाओगे! अकेले ही अकेले कब तक खींचोगे! एकालाप रहेगा, वार्तालाप तो हो नहीं सकता। दीवाल तो पहले से ही संबोधि को उपलब्ध है। दीवाल तो कहेगी: 'तुम्हारी मर्जी, बकना है बको। हम तो पहुंच चुके!' कब तक तुम एकालाप करोगे? दीवाल तो हांहूं भी न करेगी। कम से कम हां-हूं भी करे, तो भी चर्चा जारी रहे। दीवाल तो बस चुप ही रहेगी। और कोरी दीवाल! जरूर शुरू-शुरू में तुम अपने सपने उस दीवाल पर आरोपित करोगे। दीवाल का परदा बना लोगे। अपने चित्त की फिल्म को दीवाल पर फैलाओगे। अपने कचरे को दीवाल पर फेंकोगे। मगर कब तक? आखिर वही फिल्म बारबार देखते-देखते थक भी जाओगे, ऊब भी जाओगे। और जल्दी ही यह समझ में आ जाएगा कि दीवाल तो चुप है, मैं खुद ही बकवास किए जा रहा हैं। और सार क्या? दीवाल सिर भी तो नहीं हिलाती। न कोई प्रशस्ति, न कोई प्रशंसा। यह भी तो नहीं कहती कि क्या प्यारी बात कही! न ताली बजाती। किसी तरह का सहारा नहीं देगी दीवाल। नौ साल तक बोधिधर्म दीवाल को देखता रहा, वीणा! और देखते-देखते दीवाल जैसा ही कोरा हो गया। जैसी दीवाल चुप थी, ऐसा ही चुप हो गया। सत्संग हो गया। दीवाल से मिल गया वह, जो बड़े से बड़े पंडित से न मिलता। दीवाल से पा लिया उसे जो शास्त्रों में नहीं है।

    - ओशो 

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