वृद्धाः न ते ये न वदन्ति धर्मम् - ओशो
वृद्धाः न ते ये न वदन्ति धर्मम् - ओशो
वृद्धाः न ते ये न वदन्ति धर्मम्। अगर इसका हम सीधा-सीधा अर्थ करें सहजानंद, जो धर्म को नहीं बतलाते वे वृद्ध नहीं हैं, तब तो फिर लाओत्सु वृद्ध नहीं है, क्योंकि जिंदगी भर उसने इनकार किया कि धर्म के संबंध में जो भी कहा जाएगा वह गलत होगा। इसलिए और सब पूछो, धर्म के संबंध में मत पूछो। धर्म को समझना है तो चखो, पीयो। मेरे पास बैठो, उठो, जीओ। शायद लग जाए हवा। धर्म तो हवा है, एक लहर है, एक तरंग है! शायद छू ले। शायद हृदय में गुदगुदी उठा जाए। शायद छू जाए। कोई तार हृदय का बज उठे। किसी अनहोने क्षण में, जिसकी कोई भविष्यवाणी नहीं हो सकती, कब घट जाए कोई नहीं कह सकता। क्योंकि कब तालमेल बैठ जाए कोई नहीं कह सकता। किस सुबह! रात ठीक निद्रा आई हो, किस सुबह ताजे उठे होओ! किस सुबह चित्त प्रसन्न हो, मग्न हो, पक्षियों के गीतों से तरंगित हो, फूलों ने आंखों को रंग दिया हो, आकाश की ताजगी भीतर तक प्रवेश कर गई हो, कौन जाने किस दिन ऐसी घड़ी हो, सम्यक घड़ी हो और तालमेल बैठ जाए सत्संग में! क्योंकि ऐसा ही हृदय है उसका, जो बुद्ध है।
जिस दिन तुम्हारे भीतर भी ऐसा क्षण भर को हृदय हो जाता है, उसी क्षण तालमेल बैठ जाता है, संगति बैठ जाती है, उसी क्षण बुद्ध की बांसुरी और तुम्हारे तबले में संगत पड़ जाती है। बांसुरी के साथ तबला बजने लगता है। और एक बार यह बज जाए, एक बार यह संगीत तुम्हारे भीतर गूंज जाए, तो फिर इसे भूलने का कोई उपाय नहीं। मगर कोई नहीं कह सकता, कब यह होगा। बुद्ध तो हर गांव में प्रवेश के पहले घोषणा करवा देते थे कि ये-ये ग्यारह प्रश्न हैं जो कोई मुझसे न पूछे। तो बुद्ध तो वृद्ध नहीं महाभारत के हिसाब से, क्योंकि उन ग्यारह प्रश्नों में वे सब प्रश्न आ जाते हैं जिनके उत्तर नहीं दिए जा सकते। धर्म भी आ जाता है, सत्य भी आ जाता है, निर्वाण भी आ जाता है। वे सारे महत्वपूर्ण प्रश्न आ जाते हैं जिनको तुम सोचते हो कि कोई उत्तर दे दे। बुद्ध घोषणा करवा देते थे कि ये ग्यारह प्रश्न कोई मुझसे न पूछे; इनको छोड़ कर जो पूछना हो पूछे। ये ग्यारह प्रश्न अव्याख्य हैं। ये तो मौन में ही सुने और गुने जा सकते हैं, इनके संबंध में कुछ कहा नहीं जा सकता। तो मुझे अर्थ बदलना पड़ेगा। मैंने वृद्ध का अर्थ किया: प्रौढ़। मैंने वृद्ध का अर्थ किया: बुद्ध। तो फिर मुझे वदन्ति का अर्थ करना होगा--जिनके आस-पास, जिनकी हवा में धर्म है। वही धर्म को बोलने की भाषा है। भाषा नहीं, मौन उसे बोलने की भाषा है।
- ओशो
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