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    लोग भूलें भी पुरानी करते हैं - ओशो

     

    People make mistakes too - Osho


    लोग भूलें भी पुरानी करते हैं - ओशो 

            हर बाप, हर मां अपने बेटे को वही रोग दे जाते हैं, जिनमें वे सड़े, जिनमें वे गले, जिनमें वे मरे, जिनमें वे पचे, जिनमें उनकी जिंदगी बेकार गई। लेकिन फिर भी एक अहंकार है कि बच्चे हमारी सौगात को सम्हाल कर रखें। इज्जत, जो कि कभी थी ही नहीं! किस इज्जत की बातें कर रहे हो? जिंदगी इतने गलत ढंग से जीए हो कि बेइज्जती के सिवाय तुम्हारी जिंदगी में और क्या है? हां, यह हो सकता है कि भारत-रत्न की उपाधि मिली हो। यह हो सकता है कि गांव के मेयर चुने गए होओ। यह हो सकता है कि बड़े तुमने प्रमाण-पत्र जुटा लिए हों, सोने के तगमे मिले हों! मगर ये सब धोखे हैं। भीतर गड्ढे के गड्ढे हो, खाली के खाली हो। जैसे आए थे वैसे ही खाली विदा हो गए हो। ये सब कागज के प्रमाणपत्र यहीं पड़े रह जाएंगे, इनका कोई मूल्य नहीं, दो कौड़ी भी मूल्य नहीं है। लेकिन प्रेम शक्ति, उनको चोट तो लगेगी, उनकी आशाएं टूट गईं, उनकी परंपराएं टूट गई। और परंपराओं में था क्या उनकी? किसने क्या पाया है परंपराओं से? सिर्फ गुलामी के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं। उनकी इज्जत, शोहरत, वह तो टूटेगी। वह तो मीरा भी नाची, प्रेम शक्ति, तो भी टूट गई थी। मीरा कहती है: लोक-लाज खोई। मीरा के परिवार के लोगों ने जहर भेजा था कि यह तू पी ले और मर जा, क्योंकि तेरे कारण हमारी इज्जत, हमारी शोहरत पर धब्बा लगा जा रहा है।

            और मजा यह है कि मीरा अगर उस घर में पैदा न होती तो उस घर का कोई नामलेवा भी न होता आज। कौन राणाजी को याद करता? ऐसे कई बुडू, कई राणाजी हो गए; करोड़ों हो चुके। किसको फिकर थी? यह मीरा के कारण उनका नाम रह गया है। जरा सोचो तुम, बुद्ध अगर पैदा न होते तो बुद्ध के पिता शुद्धोधन का तुमने नाम भी सुना होता? ऐसे कई शुद्धोधन आए और गए, कौन फिकर करता है, कौन चिंता करता है! कोई बड़ा साम्राज्य भी न था शुद्धोधन का। एक तहसीलदार से ज्यादा हैसियत नहीं थी। अब कितने तहसीलदार हैं? एक छोटा सा गांव कपिलवस्तु, जिसमें अब कुछ खंडहर पड़े रह गए हैं, वही राजधानी थी। जरा सा विस्तार था। छोटी-मोटी जागीरदारी थी। ज्यादा बड़ी हो भी नहीं सकती थी। भारत की परंपरा खंडित होने की परंपरा है। बुद्ध के समय में भारत में दो हजार सम्राट थे। अब तुम सोच लो कि दो हजार सम्राट! भारत दो हजार राष्ट्रों में बंटा था। इनमें से किसका तुम्हें नाम याद है? एक शुद्धोधन को छोड़ कर बाकी एक हजार नौ सौ निन्यानबे सम्राटों का क्या हुआ? मगर लोग पिटी-पिटाई लकीरों पर चलते हैं। जहां बार-बार गिरे हैं वहीं-वहीं गिरते हैं। नयी भूलें भी नहीं करते। भूलें भी पुरानी करते हैं। ऐसे दकियानूस हैं कि नयी भूल की ईजाद करने की भी क्षमता नहीं है। 

    - ओशो 

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