• Recent

    वार्तालाप का नियम - ओशो

     

    Law of Conversation - Osho

    वार्तालाप का नियम - ओशो 

            दो प्रोफेसर पागल हो गए थे। यूं भी प्रोफेसर करीब-करीब पागल होते हैं, नहीं तो प्रोफेसर ही नहीं हो सकते। पागल होना तो अनिवार्य योग्यता है। जरा ज्यादा हो गए थे। मतलब सीमा के बाहर निकल गए थे। तो उनको पागलखाने में रखा गया। जगह की कमी थी, इसलिए दोनों प्रोफेसर को एक ही कमरे में रखा गया। मनोवैज्ञानिक यह जानने को उत्सुक था कि ये लोग बात क्या करते हैं! तो वह सुनता था दीवाल के पास छिप कर। दरवाजे के छेद से, चाबी के छेद से देखता भी, सुनता भी। बड़ा हैरान हआ, क्योंकि दोनों की बातों में कोई तुक नहीं था, कोई संगति नहीं थी। एक कहता आसमान की तो दूसरा कहता पाताल की। कोई लेना-देना नहीं। मगर एक बात बड़ी गजब की थी कि जब एक बोलता तो दूसरा बिलकुल चुपचाप बैठ कर सुनता। बीचबीच में सिर भी हिलाता। जब पहला खतम करता तो दूसरा शुरू करता और पहला चुप हो जाता और बीच-बीच में सिर हिलाता। और संबंध कोई था ही नहीं बातचीत का, किसी तरह का संबंध नहीं था। कोई सूत्र नहीं था। उसे हैरानी इसी बात से हुई। यह तो बात हैरानी की नहीं थी कि दोनों अल्ल-बल्ल बक रहे थे। कहां-कहां की बातें कर रहे थे। दूसरे की बात से पहले की बात का कहीं कोई सुरत्ताल नहीं था। मगर हैरानी की बात यह थी-- ये तो पागल थे तो ठीक है--हैरानी की बात यह थी कि जब एक बोलता है तो दूसरा क्यों चुप हो जाता है! और चुप ही नहीं हो जाता, बीच-बीच में सिर भी हिलाता है। तो उसने उन दोनों से पूछा कि महानुभाव! इतना राज भर मुझे बता दो कि जब एक बोलता है तो दूसरा चुप हो जाता है? उन्होंने कहा, तुमने हमें क्या समझा है? तुमने हमें पागल समझा है? अरे यह तो वार्तालाप का नियम है कि जब एक बोले तो दूसरा चुप हो जाए और सिर हिलाए। सो हम वार्तालाप का नियम पालन करते हैं।

    - ओशो 

    कोई टिप्पणी नहीं