• Recent

    जिसने समाधि को पा लिया, उसी ने धर्म को पाया है - ओशो

    One who has attained Samadhi has attained Dharma - Osho

    जिसने समाधि को पा लिया, उसी ने धर्म को पाया है - ओशो 

     'जिसमें सत्य नहीं है वह धर्म नहीं है।' अब यह भी कोई बात है? सत्य और धर्म पर्यायवाची हैं। अब जिसमें सत्य नहीं है वह धर्म नहीं है--इसको कहने की कोई जरूरत है? जो बोतल खाली है उसमें शराब नहीं है, यह भी कहना पड़ेगा? यह तो अंधा भी टटोलेगा तो पहचान लेगा कि बोतल खाली है; शराब तो दूर, इसमें पानी भी नहीं है। सत्य ही तो धर्म है! लेकिन महाभारत यह समझाने की कोशिश कर रहा है कि सत्य शास्त्रों में है और जो शास्त्रों में है वही धर्म है! वृद्ध शास्त्र दोहराते हैं, इसलिए वे जो कहते हैं वह सत्य है। फिर तो बहुत सत्य हो जाएंगे, क्योंकि जैन वृद्ध कुछ और कहते हैं, बौद्ध वृद्ध कुछ और कहते हैं, हिंदू वृद्ध कुछ और कहते हैं, मुसलमान वृद्ध कुछ और कहते हैं, ईसाई वृद्ध और कुछ कहते हैं। फिर तो बहुत धर्म हो जाएंगे। फिर तो बहुत सत्य हो जाएंगे। और सत्य एक है और धर्म भी एक है। धर्म और सत्य पर्यायवाची हैं। 

            धर्म का अर्थ ही है: जीवन का मूल आधार; जीवन जिससे धारण किया गया है। धर्म शब्द का भी यह अर्थ । होता है: जिस पर जीवन टिका है; जो जीवन की आधारशिला है; जिसने जीवन को धारण किया है। जिसके बिना जीवन नहीं है। वही तो सत्य है। वह दूसरा शब्द है, कहने भर का भेद है। सत्य और धर्म को दो समझना उपद्रव का कारण सिद्ध हआ है। सत्य और धर्म एक हैं। लेकिन तब अड़चन यह आती है कि जब भी कोई सत्य की उदघोषणा करेगा, तब पुराने शास्त्रों के विपरीत पड़ जाएगी। क्योंकि पुराने शास्त्र पिट गए, उनके शब्दों पर पंडितों ने इतने ज्यादा रंग मढ़ दिए, इतनी ज्यादा पर्ते चढ़ा दी कि उनका मूल रूप कभी का खो चुका। जब भी कोई सत्य की उदघोषणा करेगा, तब तुम्हारे तथाकथित धर्म और धर्म-शास्त्र उसके विपरीत खड़े हो जाएंगे। उस भेद को बताने के लिए यह भेद महाभारत कर रहा है: 'जिसमें सत्य नहीं है वह धर्म नहीं है।' मैं तुमसे कहना चाहता हूं: सत्य ही धर्म है। लेकिन सत्य शास्त्रों में नहीं है और न धर्म शास्त्रों में है। सत्य होता है ध्यानस्थ, समाधिस्थ व्यक्ति की चेतना में। और जिसने समाधि को पा लिया, उसी ने धर्म को पाया है।

    - ओशो 

    1 टिप्पणी: