षडयंत्रों से भरे हुए शास्त्रों में तुम्हे सत्य खोजने से भी नहीं मिलेगा - ओशो
षडयंत्रों से भरे हुए शास्त्रों में तुम्हे सत्य खोजने से भी नहीं मिलेगा - ओशो
यही द्रोणाचार्य अर्जुन को भी धोखा दे गया। यह आदमी ही धोखेबाज था। यह खड़ा हुआ कौरवों के साथ, क्योंकि इसको दिखाई पड़ा कि पांडवों के जीतने की कोई संभावना नहीं। अरे जहां जीत, वहां समझदार आदमी होता है! तब यह भूल गया अर्जुन को भी। तब यह भूल गया पांडवों को भी। इनकी संभावना जीत की नहीं थी। ये तो दर-दर के भिखारी हो गए थे। इसकी प्रशंसा की गई है। और भीष्म की प्रशंसा की गई है। भीष्म, जब कौरव और पांडव दोनों जुआ खेल रहे थे, भलीभांति परिचित थे कि शकुनी ने, कौरवों के मामा ने, झूठे पांसे बनाए हैं--चालबाजी से भरे हुए पांसे हैं। उनको किसी भी तरह। फेंको, जीत निश्चित है। फिर भी चुप रहे। छल किसको कहते हैं और? सब हार गए पांडव। द्रौपदी को दांव पर लगाया, तब भी चुप रहे। तब भी इतना मुंह न खुल सका इस महा ज्ञानी का, महा वृद्ध का! यह परम ब्रह्मचारी का तब भी मुंह न खुला कि यह क्या अन्याय हो रहा है! और सारा षडयंत्र पता है कि अब यह द्रौपदी भी जाएगी, क्योंकि वे पांसे तैयार किए हुए पांसे हैं। और द्रौपदी भी गई। और जब दुर्योधन उसके वस्त्र उतार कर नग्न करने लगा, तब भी भीष्म चुप रहे। ये कमजोर, ये नपुंसक, इनकी प्रशंसाएं! ये कायर, इनकी इतनी प्रशंसा कि अंत में खुद कृष्ण अर्जुन को कहते हैं और युधिष्ठिर को कहते हैं कि मरते हुए भीष्म से ज्ञान ले लो, धर्म का थोड़ा संदेश ले लो, इनसे कुछ उपदेश ग्रहण कर लो। जैसे कि कोई ये बुद्ध हों! इनसे क्या उपदेश लेना है? और यह आदमी फिर भी कौरवों की तरफ से लड़ा। ये जालसाजी से भरी हुई किताबें, ये षडयंत्रों से भरे हुए शास्त्र, इनमें सत्य खोजने कहां जाते हो? इनसे बचो
- ओशो
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