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    विश्वासी कौम विज्ञान को जन्म नहीं दे सकती - ओशो

     

    Faithful community cannot give birth to science - Osho

    विश्वासी कौम विज्ञान को जन्म नहीं दे सकती - ओशो 

    लेकिन ध्यान रहे, झूठे परम उत्तर, झूठे अंतिम उत्तर, सच्चे कामचलाऊ उत्तरों से भी बेकार हैं। उनका कोई मूल्य नहीं है। इसलिए हिंदुस्तान को सब पता है और फिर भी कुछ पता नहीं है। परमात्मा का पता है, ब्रह्म का पता है, माया का पता है, गेहूं पैदा करना पता नहीं है। स्वर्ग-नर्क सब पता हैं, साइकिल का पंक्चर । जोड़ना पता नहीं है। छोटी-छोटी चीजें पता नहीं हैं और बड़ी-बड़ी सब चीजें पता हैं? शक होता है! क्योंकि बड़ी चीजें तभी पता हो सकती हैं जब छोटी चीजों की सीढ़ियों से चढ़ा गया हो। लेकिन बड़ी चीजों के पता होने का सिर्फ एक ही कारण है कि उनकी जांच का कोई उपाय नहीं है, उनकी प्रयोगशाला में कोई परीक्षा नहीं हो सकती कि तुम्हारा ब्रह्म कहां है? कि तुम्हारा स्वर्ग कहां है? उसकी चूंकि कोई जांच नहीं हो सकती इसलिए मजे से पता है। और फिर जिसको जो पता है...। 

            मुसलमान अपना पता रखे है, हिंदू अपना, जैन अपना। महावीर के अनुयायी उस समय में कहते थे, तीन नर्क हैं। बुद्ध के अनुयायी कहते थे, सात नर्क हैं। और बुद्ध के अनुयायी महावीर के अनुयायियों से कहते थे कि तुम्हारा तीर्थंकर जरा ज्यादा गहरे नहीं जा पाया है, अभी तीन का ही पता लगा पाया है! मक्खली गोशाल के अनुयायी कहते थे, तुम दोनों के तीर्थंकर ज्यादा गहरे नहीं गए, सात सौ नर्क हैं। हमारा गुरु सात सौ नों तक का पता लगा कर आया है। अब यह मजा ऐसा है कि इसकी कोई जांचत्तौल नहीं हो सकती कि तीन हैं, कि सात हैं, कि सात सौ हैं, कि सात हजार हैं। यह बच्चों का खेल हो गया। कहानियां गढ़ना हो गया। ये कहानियां गढ़ी जा सकती हैं और हजारों साल तक चल सकती हैं। लेकिन इनसे जिंदगी का कोई हित नहीं होता। 

            ज्ञान भी सीढ़ियों से यात्रा करता है, और ज्ञान भी पहले जो क्षुद्रतम है उसे जानता है तब विराटतम को जान पाता है। विचार की प्रक्रिया जो निकट है उसे जानने से शुरू होती है, विश्वास की प्रक्रिया जो दूर है उसे मानने से शुरू होती है। विचार की प्रक्रिया जो हाथ के पास है, उसे पहचानने से शुरू होती है। विश्वास की प्रक्रिया जो अंतहीन, किसी दूर असीम कोने पर खड़ा है, उसे मानने से शुरू होती है। उसकी जांच का कोई उपाय नहीं होता। इसलिए विश्वासी कौम एक्सपेरिमेंटल नहीं हो पाती, प्रयोगात्मक नहीं हो पाती; क्योंकि प्रयोग तो हाथ के पास किया जा सकता है; दूर का प्रयोग नहीं किया जा सकता। विचार करने वाली कौम प्रयोगात्मक हो पाती है। प्रयोग से विज्ञान का जन्म होता है। विज्ञान को हम जन्म नहीं दे पाए। और बिना विज्ञान के इस देश का कोई भविष्य नहीं है।

     - ओशो 

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