विचार करने वाले को दिखाई पड़ता है कि अज्ञान बहुत बड़ा है, ज्ञान बहुत छोटा है - ओशो
विचार करने वाले को दिखाई पड़ता है कि अज्ञान बहुत बड़ा है, ज्ञान बहुत छोटा है - ओशो
आइंस्टीन से किसी ने मरने के कुछ दिन पहले पूछा कि आप एक विचारक में और एक विश्वासी में क्या फर्क करते हैं? तो आइंस्टीन ने कहा, मैं थोड़ा-सा ही फर्क करता हूं। अगर विचारक से सौ सवाल पूछो तो निन्यानबे सवालों के संबंध में कहेगा, मुझे मालूम नहीं है। और जिस एक सवाल के संबंध में उसे मालूम होगा, तो वह कहेगा कि मुझे मालूम है, लेकिन जितना मुझे मालूम है उतना कह रहा हूं। यह उत्तर अंतिम नहीं है, अल्टीमेट नहीं है। कल और भी मालूम हो सकता है और तब उत्तर बदल सकता है। विचार करने वाले के पास बंधे हुए अंतिम उत्तर नहीं हो सकते। विचार करने वाले के पास सभी प्रश्नों के उत्तर नहीं हो सकते। जिंदगी बहुत जटिल है और जिंदगी बहुत गहरा रहस्य है। और जिंदगी में बहुत कुछ अज्ञात और अनंत है।
विचार करने वाले को दिखाई पड़ता है कि अज्ञान बहुत बड़ा है, ज्ञान बहुत छोटा है। जैसे अमावस की अंधेरी रात में एक हाथ में मिट्टी का छोटा-सा दीया है। चारों तरफ घनघोर अंधेरा है और छोटा-सा मिट्टी का दीया है, और वह ज्योति भी प्रतिपल बुझी-बुझी होती है। हवा के झोंके आते हैं और ज्योति बुझने को होती है और अंधेरा बढ़ने को होता है। प्रतिपल अंधेरा चारों तरफ से ज्योति को घेरे हुए है। मजा यह है कि उस ज्योति में सिवाय अंधेरे के और कुछ भी दिखाई भी नहीं पड़ता है। विचार के पास अंतिम उत्तर नहीं हो सकते; विचार के पास ज्यादा से ज्यादा कामचलाऊ उत्तर हो सकते हैं। और विचार के पास सभी उत्तर नहीं हो सकते। विश्वास के पास सभी उत्तर हैं और कामचलाऊ नहीं हैं--अल्टीमेट हैं, आखिरी हैं। विश्वास के लिए सब मालूम है, कुछ अज्ञात नहीं है, कोई रहस्य नहीं है। उसे परमात्मा का घरठिकाना भी पता है, स्वर्ग और नर्क की गहराई और लंबाई और चौड़ाई भी पता है। उसे सब पता है! विश्वासी परम ज्ञानी है और विचारक परम अज्ञानी है। इसलिए हमारे अहंकार को विश्वास में तो मजा आता है, विचार में तकलीफ होती है। क्योंकि विश्वास करके हम भी परम ज्ञानी हो जाते हैं; विश्वास करके हमारे पास भी सभी उत्तर आ जाते हैं, हर चीज का उत्तर है। और विचार करके हमारे जो बंधे-बंधाए उत्तर थे वे भी खिसक जाते हैं और धीरे-धीरे हाथ खाली हो जाता है।
- ओशो
कोई टिप्पणी नहीं