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    विचारों का मेला - ओशो

    Fair of Ideas - Osho

    विचारों का मेला - ओशो 

            आदमी पागल ही है। और उसके पागलपन का कुल कारण इतना है कि विचारों का जो कुंभ-मेला उसके भीतर लगा हुआ है...। क्या-क्या विचार! नागा बाबा! कैसे-कैसे नागा बाबा कि जननेंद्रिय से बांध कर जीप को घसीट दें! ऐसे-ऐसे विचार! और कुंभ का मेला! उसमें क्या नहीं! हर चीज देखो। बंबई की नंगी धोबन देखो। अब बंबई और नंगी धोबन का क्या संबंध है! बचपन में मेरे गांव में आते थे लोग। एक छोटा सा डब्बा, मगर उसमें बंबई की नंगी धोबन जरूर होती थी। मैं कई बार सोचा कि बंबई से और नंगी धोबन का क्या संबंध! और अब तो बंबई भी न रही, अब तो मुंबई हो गई! अब नंगी धोबन का क्या होगा? ऐसे-ऐसे विचार आएंगे, ऊंचे विचार आएंगे! तुम कभी कल्पना भी नहीं कर सकोगे कि क्या-क्या तुम्हारे भीतर कचरा-कबाड़ भरा हुआ है। इसको एक दफा देखो गौर से। तो वीणा, दीवाल से बातें करने से कोई पागल नहीं होता। मुल्ला नसरुद्दीन कह रहा था, 'जिसने यह सिद्ध किया है कि पृथ्वी घूमती है, वह अवश्य भंगेड़ी रहा होगा।' मैंने कहा, 'तुझे क्या हो गया नसरुद्दीन? कैसे तुझे इस बात का पता चला? कैसे तूने जाना?' उसने कहा, 'इसमें क्या मामला है? कल रात भांग खाने के बाद मुझे भी ऐसा ही लगा कि पृथ्वी घूम रही है। उसके पहले कभी मुझे ऐसा अनुभव ही नहीं हुआ था। निश्चित ही, जिसने यह सिद्ध किया वह भंगेड़ी रहा होगा।'

    - ओशो 

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