जो व्यक्ति सत्य के संबंध में किन्हीं वादों, विवादों और पंथों में बंध जाता है, वह सत्य को उपलब्ध नहीं हो सकता - ओशो
जो व्यक्ति सत्य के संबंध में किन्हीं वादों, विवादों और पंथों में बंध जाता है, वह सत्य को उपलब्ध नहीं हो सकता - ओशो
दुनिया में दो तरह के लोग हैं। एक वे लोग, जो सूर्य की ओर पीठ किए रहते हैं और थोड़े-से वे लोग हैं जो सूर्य की ओर मुंह कर लेते हैं। जो लोग सूर्य की ओर पीठ किए रहते हैं उनका जीवन दुख, पीड़ा और मृत्यु के अतिरिक्त कुछ भी नहीं, उनका जीवन एक दुःस्वप्न से ज्यादा नहीं। वे नाम मात्र को ही जीते हैं। कल्पना में ही उनका सारा आनंद होता है। आशाओं में ही उनकी सारी की सारी निष्ठा होती है। उपलब्धियां उनकी करीब-करीब शून्य होती हैं। और जो लोग सूर्य की ओर या प्रभु की ओर मुंह कर लेते हैं उनके जीवन में आमूल क्रांति घटित हो जाती है। एक ही दुख है कि हमारी पीठ उस तरफ हो जहां हमारा मुंह होना चाहिए। लेकिन, कुछ कारण हैं जिनकी वजह से जो होना चाहिए वह नहीं हो पाता और जो नहीं होना चाहिए वही होता रहता है।
उन कारणों पर थोड़ा-सा विचार करना है। इन तीन दिनों में सूर्य की ओर हमारा मुंह कैसे हो जाए इस संबंध में ही विचार करेंगे। कौन-सी बातें हैं जो हमें रोके हैं, कौन-सी बातें हैं जो हमें बांधे हुए हैं, कौन-सी चित्त-अवस्थाएं हैं जो हमें अपने को ही पाने और अपने को ही उपलब्ध करने में बाधाएं बन जाती हैं, उन पर विचार करेंगे और यह भी विचार करेंगे कि उन बाधाओं को दूर कैसे किया जा सकता है। सबसे पहली बात जो मैं आपसे कहना चाहूंगा इन तीन दिनों की चर्चा में, वह यह है कि केवल वे ही मनुष्य, केवल वे ही आत्माएं सत्य की ओर उन्मुख होने में समर्थ हो पाती हैं, जो अपने चित्त को समस्त वाद-विवादों से, सत्य के संबंध में प्रचलित समस्त पंथों और मतों से, सत्य के संबंध में बहुप्रचारित संस्थाओं, संप्रदायों और चर्चों से अपने को मुक्त कर लेती हैं। जो व्यक्ति आस्तिकता या नास्तिकता से बंध जाता है, जो व्यक्ति सत्य के संबंध में किन्हीं वादों, विवादों और पंथों में बंध जाता है, वह सत्य को उपलब्ध करने में या सत्य की ओर आंखें उठाने में असमर्थ हो जाता है।
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