सत्य बहुत नहीं हो सकते, सत्य एक ही हो सकता है - ओशो
सत्य बहुत नहीं हो सकते, सत्य एक ही हो सकता है - ओशो
मैंने एक छोटी-सी कहानी सुनी है; अत्यंत काल्पनिक कहानी है लेकिन विचार करने जैसी है। वह शायद उपयोग की हो। मैंने सुना है, एक मुसलमान सूफी फकीर ने एक रात्रि स्वप्न देखा कि वह स्वर्ग में पहुंच गया है और उसने वहां यह भी देखा कि स्वर्ग में बहुत बड़ा समारोह मनाया जा रहा है। सारे रास्ते सजे हैं। बहुत दीप जले हैं। बहुत फूल रास्ते के किनारे लगे हैं। सारे पथ और सारे महल सभी प्रकाशित हैं। उसने जाने वालों से पूछा, आज क्या है? क्या कोई समारोह है? और उसे ज्ञात हुआ कि आज भगवान का जन्मदिन है और उनकी सवारी निकलने वाली है।
वह एक दरख्त के पास खड़ा हो गया। लाखों लोगों की बहुत बड़ी शोभायात्रा निकल रही है। सामने घोड़े पर एक अत्यंत प्रतिभाशाली व्यक्ति बैठा हुआ है। उसने लोगों से पूछा, यह प्रकाशवान व्यक्ति कौन है? ज्ञात हुआ कि यह ईसा मसीह हैं और उनके पीछे उनके अनुयायी हैं। लाखों-करोड़ों उनके अनुयायी हैं। उनके निकल जाने के बाद वैसे ही दूसरे व्यक्ति की सवारी निकली, तब फिर उसने पूछा कि यह कौन हैं? उसे ज्ञात हआ, यह हजरत मोहम्मद हैं। वैसे ही लाखों लोग उनके पीछे हैं। फिर बुद्ध हैं। फिर महावीर हैं, जरथुस्त्र हैं, कनफ्यूशियस हैं और सबके पीछे करोड़ों-करोड़ों लोग हैं। जब सारी शोभायात्रा निकल गई तो पीछे अत्यंत दीन और दरिद्र सा एक वृद्ध घोड़े पर सवार है। उसके पीछे कोई नहीं है। उसने पूछा, यह कौन है? और ज्ञात हुआ कि यह स्वयं परमात्मा हैं। घबराकर उसकी नींद खुल गई और हैरान हुआ...।
यह स्वप्न में सत्य नहीं हुआ है, यह आज सारी जमीन पर सत्य हो गया है। लोग क्राइस्ट के साथ हैं, बुद्ध के साथ हैं, राम के साथ हैं, कृष्ण के साथ हैं, परमात्मा के साथ कोई भी नहीं है। जिसे परमात्मा के साथ होना हो उसे बीच में किसी मध्यस्थ को लेने की कोई भी जरूरत नहीं। और जो परमात्मा के साथ हो, वह स्मरण रखे कि क्राइस्ट के साथ हो ही जाएगा, लेकिन जो क्राइस्ट के साथ है, अनिवार्य नहीं है कि वह परमात्मा के साथ हो जाएगा। जो परमात्मा के साथ है, वह राम, बुद्ध, कृष्ण और महावीर के साथ हो ही जाएगा, लेकिन जो उनके साथ है स्मरण रखे कि अनिवार्य नहीं कि वह परमात्मा के साथ हो जाएगा। और फिर यह भी स्मरण रहे कि जो बुद्ध के साथ है, कृष्ण के विरोध में है; और जो क्राइस्ट के साथ है और राम के विरोध में है; और जो महावीर के साथ है तथा कनफ्यूशियस के विरोध में है, वह कभी परमात्मा के साथ नहीं हो सकता। जो परमात्मा के साथ है वह एक ही साथ क्राइस्ट, राम, बुद्ध, महावीर सबके साथ हो जाता है।
अपने मन में यह स्मरण रखने की बात है कि सत्य बहुत नहीं हो सकते, सत्य एक ही हो सकता है। और जो एक सत्य है उसके साथ अगर होना है तो सत्य के नाम से जो सत्य की अनेक धारणाएं प्रचलित हैं उनका त्याग कर देना अनिवार्य है। इसके पहले कि कोई मनुष्य धार्मिक हो सके, उसे जैन, हिंदू, मुसलमान और ईसाई होना छोड़ देना चाहिए। इसके पहले कि कोई धार्मिक हो सके, उसे धर्मों के नाम से जो पंथ प्रचलित हैं उनसे थोड़ा दूर हट जाना चाहिए। जितना उनसे दूर होगा उतना धर्म के निकट होगा और जितना आबद्ध होगा उतना धर्म से दूर हो जाएगा। यह स्वाभाविक भी है। किंतु यह इसलिए भी स्वाभाविक है कि जिस सत्य को हम दूसरों से स्वीकार कर लेते हैं वह हमारे लिए सत्य नहीं होता है।
- ओशो
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