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    अति प्रश्न के पूछने से विज्ञान जन्मता है - ओशो

     

    Science is born by asking too many questions - Osho

    अति प्रश्न के पूछने से विज्ञान जन्मता है - ओशो 

    सुना है मैंने कि जनक ने एक बहुत बड़ा आयोजन किया था; उस जमाने के सारे ज्ञानियों को इकट्ठा किया था। उस दिन इस मुल्क के भाग्य का फैसला हो गया था। इस चौरस्ते पर उस फैसले को फिर से बदलने की जरूरत आ गई है। जनक के जमाने के जितने ज्ञानी थे, उसने इकट्ठे किए थे। उसने एक हजार गाएं अपने द्वार पर खड़ी कर रखी थीं। उन गायों की सींगों पर सोना चढ़ा दिया था, हीरे जड़ दिए थे, और कहा था कि जो सबसे ज्यादा ज्ञानी होगा वह इन गायों को ले जाएगा। बड़े-बड़े ज्ञानी आए, बड़े-बड़े पंडित आए, विचारक आए, सभा में बड़ा विवाद हुआ। 

            पीछे याज्ञवल्क्य को खबर मिली, वह भी आया। वह अपने शिष्यों को लेकर आया था। वह दरवाजे के भीतर घुसा और उसने शिष्यों से कहा कि जाओ, गायों को तो पहले घर ले जाओ, निपटारा हम पीछे कर लेंगे। गाएं धूप में खड़ी बहुत थक गई होंगी। सारी सभा घबड़ा गई। जनक भी कुछ बोल न सका। लेकिन कोई भी यह न समझा कि इस तरह दंभ की भाषा बोलने वाला आदमी जानी नहीं हो सकता। याज्ञवल्क्य भीतर गया अकड़ता हुआ, उसने सबको हरा दिया। तब एक स्त्री गार्गी खड़ी हुई। और गार्गी ने याज्ञवल्क्य से प्रश्न पूछने शुरू किए। याज्ञवल्क्य उसके प्रश्नों से घबड़ाने लगा; क्योंकि दंभ जो है वह सदा अज्ञान के ऊपर खड़ा होता है। प्रश्नों से बहुत घबड़ाता है। श्रद्धा मांगता है। गार्गी पूछती ही चली गई। याज्ञवल्क्य ने आखिर में कहा कि जो भी है सब ब्रह्म है। गार्गी ने पूछा कि मैं यह जानना चाहती हूं, ब्रह्म किस पर आधारित है? याज्ञवल्क्य ने कहा, गार्गी अब जबान बंद कर, अन्यथा तेरा सिर नीचे गिरा दिया जाएगा! और उस सभा के सारे लोग चुपचाप बैठे सुनते रहे। और जनक भी चुपचाप सुनता रहा। 

            उस स्त्री ने ठीक सवाल पूछा। उस स्त्री के पास एक वैज्ञानिक बुद्धि थी। लेकिन याज्ञवल्क्य के पास एक विश्वासी बुद्धि थी और उसने कहा कि तेरा सिर गिर जाएगा नीचे अगर और सवाल पूछेगी। यह अति प्रश्न हो गया। यह सीमा के बाहर जाना है, ब्रह्म का आधार मत पूछ। बस जब हम कहते हैं, अति प्रश्न हो गया, तभी वैज्ञानिक चित्त मर जाता है। असल में वैज्ञानिक चित्त के लिए अति प्रश्न है ही नहीं। ऐसा कोई प्रश्न नहीं है जो न पूछा जा सके। और अगर ऐसा कोई प्रश्न है जो नहीं पूछा जा सकता तो उसे तो सबसे पहले पूछा जाना चाहिए, क्योंकि वह जरूर गहरे में जिंदगी का प्रश्न होगा जो नहीं। पूछा जा सकता। गार्गी चुप हो गई। वह सभा चुप हो गई। याज्ञवल्क्य गायों को घेर कर चला गया। उस दिन से पांच हजार साल हो गए, हमने अति प्रश्न नहीं पूछे। और जब अति प्रश्न नहीं पूछे तो हिम्मत टूटती चली गई। 

            फिर हमने प्रश्न ही पूछने बंद कर दिए। फिर हम जवाबों पर ठहर गए। अब हमारे पास जवाब सब हैं, प्रश्न बिलकुल नहीं हैं। हर चीज का उत्तर है, सवाल बिलकुल नहीं हैं। और गांव-गांव गुरु बैठे हैं। नगर-नगर गुरु घूम रहे हैं। साधू हैं, संन्यासी हैं, मुनि हैं, वे लोगों को समझा रहे हैं--श्रद्धा रखो, श्रद्धा रखो, श्रद्धा रखो! वे लोगों को सुला रहे हैं। अच्छा था कि जहर पिला देते। श्रद्धा से कम खतरनाक सिद्ध होता। आदमी मर जाता तो ठीक था। आदमी जिंदा भी है और आत्मा मर गई है। वह प्रश्न पूछने से जो तेजस्विता आती है, संघर्ष करने से विचार के जो बल आता है, आग में गुजरने से प्रश्न की जो निखार आता है, वह सब खो गया, सब मंदा हो गया। इस चौरस्ते पर मैं दोहरा कर--याज्ञवल्क्य कहीं सुनते हों तो उनसे कहना चाहता हूं कि गार्गी अब अति प्रश्न पूछेगी। और याज्ञवल्क्य गाएं वापस लौटा जाओ। अब यह चलेगा नहीं। अति प्रश्न पूछे जाएंगे। अति प्रश्न के पूछने से विज्ञान जन्मता है। लेकिन हम कोई प्रश्न नहीं पूछते! विचार प्रश्न पूछता है, विश्वास उत्तर स्वीकार करता है।

     - ओशो 

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