हमने मृत्यु दर को तो नियंत्रित कर लिया, हमें जन्मदर को भी नियंत्रित करना होगा - ओशो
हमने मृत्यु दर को तो नियंत्रित कर लिया, हमें जन्मदर को भी नियंत्रित करना होगा - ओशो
विज्ञान ने मौत को पीछे हटा दिया। लेकिन जन्म की, जो पैदा करने की हमारी आदत है वह अवैज्ञानिक है। वह उन दिनों की है जब विज्ञान नहीं था। प्रकृति जो है, भूल-चूक न हो जाए, इसलिए बहुत अबन्डेंस में प्रयोग करती है, बहुत अति में प्रयोग करती है। जहां एक गोली मारने से काम चल जाए वहां प्रकृति हजार गोली मारती है। क्योंकि अंधा खेल है, हजार में एक लग जाए तो बहत। आदमी निशानेबाज हो गया है। अब वह एक ही गोली में मार सकता है लेकिन आदत उसकी पुरानी है। प्रकृति के अबन्डेंस को समझना बहुत जरूरी है। एक बीज आप लगाते हैं, हजार-लाख बीज हो जाते हैं।
यह बात की कोशिश है कि लाख बीज में कम से कम एक तो फिर पौधा बन सकेगा। एक पुरुष अपनी साधारण स्वास्थ्य की जिंदगी में चार हजार संभोग कर सकता है, सहज। चार हजार। और अगर प्रत्येक संभोग बच्चा बन सके तो एक-एक आदमी चार-चार हजार बच्चों का बाप हो सकता है। लेकिन ये चार हजार नहीं हो पाते, क्योंकि स्त्री की क्षमता बहुत कम है। वह वर्ष में एक ही बच्चे को जन्म दे सकती है। इसलिए जिन मुल्कों में बच्चों की ज्यादा जरूरत थी--जैसे मुसलमान मुल्कों में--क्योंकि युद्ध उन्हें करना था और लड़के मर जाते। इसलिए मोहम्मद ने चार-चार शादियों की छूट दी। पुरुष कम हों, औरतें ज्यादा हों, तो संख्या को कोई खतरा नहीं है, क्योंकि एक पुरुष पचास स्त्रियों से बच्चे पैदा कर सकता है।
लेकिन अगर स्त्रियां कम हो जाएं और पुरुष कितने ही हों तो कुछ फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि स्त्री की क्षमता बहुत सीमित है। वह एक ही बच्चे को वर्ष में जन्म दे दे तो बहत है। चार हजार मैं कह रहा हूं, अगर एक-एक संभोग बच्चा बन जाए तो चार हजार बच्चे एक पुरुष पैदा कर सकता है। लेकिन एक संभोग में जितने वीर्याणु जाते हैं उसमें एक करोड़ बच्चे पैदा हो सकते हैं। एक संभोग में एक करोड़ वीर्याणु जाते हैं। अगर इसको भी हम हिसाब में लें तो एक करोड़ गुणित चार हजार, चार हजार करोड़ बच्चे एक पुरुष के व्यक्तित्व से पैदा हो सकते हैं। एक पुरुष इतने वीर्याणु पैदा करता है अपनी सामान्य उम्र में कि इस पृथ्वी पर जितने लोग हैं उससे कई सौ गुना ज्यादा। अभी साढ़े तीन अरब लोग हैं, साढ़े तीन सौ करोड़। चार हजार करोड़ बच्चों का बाप एक आदमी बन सकता है--बनता तो है तीन-चार का, छः-सात का, आठ का, लेकिन प्रकृति भूल-चूक न हो जाए इसलिए इंतजाम बहुत अतिरेक करती है। तो हमने मृत्यु दर तो रोक ली और प्रकृति का जो अतिरेक का इंतजाम है उस अतिरेक को हम जारी रखें तो मनुष्य अपनी ही संख्या के दबाव से मर सकता है। और अब तो और नई संभावनाएं खुल गई हैं। वे संभावनाएं हमारी जो सामान्य सीमाएं थीं उनके भी पार ले जाती हैं। जैसे, आज वीर्याणु को सुरक्षित रखा जा सकता है। पुराने जमाने में यह संभावना न थी। आप रहते दुनिया में तो ही बाप बन सकते थे। अब आपका रहना आवश्यक नहीं है। आप हजार साल बाद भी किसी बेटे के बाप बन सकते हैं। आपके वीर्याणु को सुरक्षित रखा जा सकता है।
- ओशो
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