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    दूसरे का दिया हुआ धर्म कभी जीवंत नहीं हो सकता - ओशो

     

    Religion given by others can never come to life - Osho

    दूसरे का दिया हुआ धर्म कभी जीवंत नहीं हो सकता - ओशो 

    सोवियत रूस में बीस करोड़ लोग हैं। चालीस वर्षों से उनका देश नास्तिकता का संस्कार दे रहा है। शिक्षा में, प्रचार में, साहित्य में, वे अपने युवकों को समझा रहे हैं कि नहीं, न कोई ईश्वर है, न कोई परमात्मा है और न कोई आत्मा है; मोक्ष और धर्म सब अफीम का नशा है। चालीस वर्ष में बीस करोड़ लोगों को उन्होंने सहमत कर लिया है कि धर्म अफीम का नशा है और कोई ईश्वर नहीं है, और कोई आत्मा नहीं है। चालीस वर्ष के ।

            प्रोपेगेंडा ने बीस करोड़ लोगों के मस्तिष्क में यह बैठा दिया है कि नास्तिकता ही सत्य है और आस्तिकता मूर्खता की बात है। आप कहेंगे कि उनकी दृष्टि गलत है; मैं कहूंगा, आपकी दृष्टि भी गलत है। अगर चालीस वर्ष के प्रचार से नास्तिकता भीतर बैठ सकती है तो आपकी भी जो आस्तिकता है वह चार हजार वर्ष के प्रचार से आस्तिकता भी बैठ सकती है। उनकी नास्तिकता जैसी थोथी है, आपकी आस्तिकता भी उससे ज्यादा मूल्य नहीं रखती; वह भी उतनी ही थोथी है। और यही वजह है कि आप कहने को आस्तिक होंगे, धार्मिक होंगे, मंदिर में, पूजा में निष्ठा रखते होंगे, लेकिन आपके जीवन में धर्म की कोई किरण दिखाई नहीं देगी। यही वजह है कि दूसरे का दिया हुआ धर्म कभी जीवंत नहीं हो सकता। कभी वह आपके प्राणों की ऊर्जा नहीं बन सकता है। वह केवल आपकी एक बौद्धिक निष्ठा और आस्था मात्र बन कर रह जाता है।

    - ओशो 

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