क्रांति न हो, इस लिए हमने इस देश में सबको संतोष का पाठ पढ़ा दिया - ओशो
क्रांति न हो, इस लिए हमने इस देश में सबको संतोष का पाठ पढ़ा दिया - ओशो
अभी रासायनिक बड़ी खोजें हुई हैं। एल.एस.डी. है, मैस्कलिन है, और तरह के ड्रग्स खोजे गए हैं, और कुछ ऐसी केमिकल व्यवस्था भी कल्पना में आ गई है जिससे मनुष्य के भीतर से असंतोष को दूर किया जा सकता है। बहुत दूर नहीं है वह दिन कि हम गांव के पानी की झील में ऐसे केमिकल्स डाल दें कि सारे गांव के लोग अपने-अपने नल से पानी पीते रहें, उन्हें पता भी न चले और उनके भीतर से असंतोष समाप्त हो जाए। जब मैं अभी रासायनिक क्रांति पर एक किताब पढ़ रहा था और जब मुझे यह पता चला कि इस तरह के द्रव्य खोज लिए गए हैं जो आदमी के भीतर से अशांति को, असंतोष को, विद्रोह को छीन सकते हैं, तो मेरा मन हुआ कि उस लेखक को एक पत्र लिखू कि तुमने अब खोजे ये, यह बड़ी पुरानी खोज है, भारत ने पांच हजार साल पहले खोज ली है। लेकिन हमने आध्यात्मिक तरकीबें खोजी थीं, भौतिक तरकीबें नहीं। हम किसी आदमी को कोई इंजेक्शन देकर संतोष नहीं लाना चाहते, हमने संतोष की और भी अच्छी व्यवस्था खोजी थी। हम संतोष ही पिलाते थे बचपन से। हमने इस देश को संतुष्ट ही रखा। हमने उस बिंदु तक न जाने दिया जहां असंतोष शुरू होता है। क्योंकि जहां असंतोष शुरू होता है तो फिर बायलिंग प्वाइंट बहुत दूर नहीं रहता। फिर उबलने का बिंदु भी पास आएगा और क्रांति होगी। असंतोष है आग--अगर बढ़ती चली जाए तो एक बिंदु पर एवोपरेशन, पानी भाप बनेगा, छलांग लगेगी, क्रांति हो जाएगी।
इसलिए हम संतोष सिखाते रहे हैं। हम कहते हैं, संतोष सबसे बड़ा धर्म है। संतोष से बड़ा अधर्म नहीं हो सकता। क्योंकि धर्म का मतलब अगर गति है, अगर धर्म का मतलब विकास है, अगर धर्म का मतलब प्रगति है, अगर धर्म का मतलब रोज आगे जाना है, तो संतोष धर्म नहीं हो सकता, असंतोष धर्म होगा। हम सिखाते हैं कि संतोष जिसे मिल गया उसे सब मिल गया। नहीं, बात उलटी है। संतोष जिसे मिल गया उसे सब नहीं मिल जाता। हां, सब जिसे मिल जाए उसे संतोष जरूर मिल सकता है। लेकिन हम संतोष को पहले पिला देते हैं और तब सब यात्रा बंद हो जाती है। डबरा बन जाता है।
- ओशो
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