सत्य दिया नहीं जाता, उसे पाना होता है - ओशो
सत्य दिया नहीं जाता, उसे पाना होता है - ओशो
बहुत प्राचीन समय में ऐसा हुआ कि एक राज्य में एक युवक की अत्यंत वीरतापूर्ण घटनाओं से, उसके अत्यंत दुस्साहसपूर्ण कार्यों से राज्य का सम्राट बहुत प्रसन्न हो गया और उसने कहा कि राज्य का जो सबसे सम्मानित पद है वह दूंगा तथा जो सबसे सम्मानित पदवी है उसे समर्पित करूंगा, उसे भेंट करूंगा। यह घटना राज्य के द्वारा इस तरह से सम्मानित होने की तीन सौ वर्षों से उस राज्य में नहीं घटी थी। उस युवक को प्रसन्न हो जाना चाहिए था। लेकिन लोगों ने राजा को कहा कि युवक प्रसन्न नहीं है। राजा ने उसे बुलाया और उससे कहा कि तीन सौ वर्षों से यह सम्मान किसी को नहीं मिला है। राज्य का सर्वोच्च सम्मान मैं तुम्हें दे रहा हूं, किंतु सुना कि तुम प्रसन्न नहीं हो!
उस युवक ने कहा कि मुझे धन नहीं चाहिए, मुझे पद नहीं चाहिए, मुझे यश और गौरव नहीं चाहिए, मैं कुछ और मांगता हूं; यदि राज्य उसे दे सके तो मैं कृतकृत्य हो जाऊं। राजा ने कहा कि जो कहोगे मैं दूंगा। सारे राज्य की शक्ति लग जाए तो भी मैं दूंगा। उस युवक ने कहा कि मुझे सत्य चाहिए। राजा दो क्षण चुप रह गया और उसने कहा कि मुझे क्षमा करो, वह मेरे पास तो है नहीं जो मैं दे दूं। मुझे खुद ही सत्य का पता नहीं और मेरे सारे राज्य की सारी शक्ति और संपदा उसे खरीद नहीं सकेगी। क्योंकि अगर राज्य की शक्तियां और संपदाएं सत्य को खरीद सकतीं तो जिन्होंने राज्य, सत्य को पाने के लिए छोड़े वे नासमझ थे। क्योंकि अगर संपदा सत्य को खरीद सकती तो जिन्होंने संपदा को ठोकर मारी और सत्य को खोजा वे पागल थे। क्योंकि अगर सत्य असल में किसी से मांगने से मिल जाता तो जिन्होंने तपस्या की, साधना की वे गलती में थे।
शिक्षा मांगनी नहीं चाहिए। तो यह उसने कहा कि मुझे दिखाई नहीं देता कि सत्य कोई दे सकता है! फिर मेरे पास सत्य है भी नहीं, मैं कैसे दे सकता हूं! हां, मैंने सुना है पहाड़ में एक संन्यासी के बाबत कि उसे सत्य उपलब्ध हुआ है। मैं तुम्हारी ओर से प्रार्थना करूंगा उस संन्यासी के चरणों में सिर रख कर। उस पहाड़ पर राजा उस युवक को साथ ले गया। उसके चरणों में सिर रख कर उसने प्रार्थना की और कहा कि जो मैंने वरदान दिया है कि जो यह मांगेगा वह मैं दूंगा, लेकिन इसने सत्य मांगा और मेरे पास तो वह है ही नहीं! मैं आपके पास आया हूं, इसे सत्य दे दें। वह संन्यासी भी वैसा ही सुन कर चुप रह गया जैसे खुद राजा रह गया था। और फिर उसने कहा, अकेला सत्य एक ऐसा तत्व है जो कोई दूसरा किसी को नहीं दे सकता है। जिस दिन सत्य दिया जा सकेगा उस दिन सत्य सत्य नहीं रह जाएगा। सत्य दिया नहीं जाता, उसे तो पाना होता है।
लेकिन हम जिन सत्य की धारणाओं को पकड़ लेते हैं वे पाई हई नहीं हैं, दी हुई हैं। आप जो भी धर्म स्वीकार किए हैं वह आपने पाया नहीं है, स्वीकार किया है। परंपरा ने, माता-पिता ने, परिवार ने, संस्कारों ने आपको दिया है। जो भी दिया गया है वह सत्य नहीं हो सकता। अधिक लोग उस दिए गए सत्य को ही सत्य मान कर जीवन व्यतीत कर देते हैं और इससे बड़ी कोई दूसरी वंचना नहीं हो सकती। स्मरण रखिए, जो भी आपको दिया गया है वह सत्य नहीं हो सकता। सत्य को पाने के लिए पहला चरण होगा, जो दिया गया है उसे अस्वीकार कर देना। अगर नास्तिकता दी गई है तो नास्तिकता अस्वीकार कर दें, अगर आस्तिकता दी गई है तो आस्तिकता अस्वीकार कर दें।
- ओशो
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