इनर लिविंग स्पेस जितना कम होता जायेगा, लोगों का पागलपन उतनी ही तीव्रता से बढ़ता चला जाएगा - ओशो
इनर लिविंग स्पेस जितना कम होता जायेगा, लोगों का पागलपन उतनी ही तीव्रता से बढ़ता चला जाएगा - ओशो
जब मैंने पहली दफा अजायबघरों का अध्ययन किया और मुझे पता चला कि अजायबघर में जंगल के जानवर पागल हो जाते हैं, तो मुझे खयाल हुआ कि हमने आदमी के समाज को कहीं अजायबघर तो नहीं बना दिया है? क्योंकि आदमी जितना पागल हो रहा है उतना कोई जानवर पागल नहीं हो रहा है। और यह पागल होने का अनुपात भी जितनी सघन होती जाती है संख्या वहां बढ़ता चला जा रहा है--उसी अनुपात में बढ़ता चला जा रहा है। आज भी आदिवासी हमारी बजाय कम पागल होता है। और हम भी आज बंबई की बजाय कम पागल होते हैं। और बंबई भी अभी न्यूयार्क की बजाय कम पागल होता है। तो आज अमरीका में मरीजों के लिए जितने बेड हैं, जितने बिस्तर हैं, उसमें आधे बिस्तर मानसिक मरीजों के लिए हैं। यह अनुपात बहुत अदभुत है।
पचास प्रतिशत बेड अमरीका के मानसिक मरीजों के लिए हैं और प्रतिदिन पंद्रह लाख आदमी मानसिक इलाज के लिए पूछताछ कर रहे हैं। असल में शरीर का डाक्टर अमरीका में आउट आफ डेट हो गया है। मन का डाक्टर आधुनिक, अत्याधुनिक चिकित्सक है। यह पागलपन तीव्रता से बढ़ता चला जाएगा। यह कई रूपों में प्रकट होगा। अब कलकत्ता में या बंबई में अगर पागलपन फूटता है और लोग बस जलाते हैं और ट्राम जलाते हैं, तो राजनैतिक नेता जो बातें हमें बताता है कि यह कम्युनिज्म का प्रभाव है, यह फलां वाद का प्रभाव है, यह ढिकां वाद का प्रभाव है, ये अखबार के तल की बुद्धि से खोजी गई बातें हैं। जिन्होंने अखबार से ज्यादा जिंदगी में और कुछ भी नहीं सोचा और खोजा है।
वैसे भी राजनैतिक नेता होने के लिए बुद्धि की कोई जरूरत नहीं होती; बल्कि बुद्धि हो तो राजनैतिक नेता होना जरा मुश्किल हो जाता है; क्योंकि नेता होने के लिए अनुयायियों के पीछे चलना पड़ता है। और जहां बुद्ध अनुयायी हों वहां नेता बुद्धिमान होना बहुत मुश्किल है। उसे बुद्ध होना ही चाहिए, निष्णात बुडू होना चाहिए। राजनैतिक नेता कहता है कि कम्युनिज्म है, फलां है, ढिकां है--यह सब ऊपरी बकवास है; असली सवाल भीतर लिविंग स्पेस कम होती जा रही है।
- ओशो
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