जो अकेले होने को राजी नहीं, वो सत्य को ना पा सकेगा - ओशो
जो अकेले होने को राजी नहीं, वो सत्य को ना पा सकेगा - ओशो
लेकिन स्मरण रखें, जो अकेले होने को राजी नहीं है, जो भीड़ से मुक्त नहीं हो सकता, वह सत्य की बातों पर विचार करना छोड़ दे। उसे सत्य से कभी कोई संबंध नहीं होगा। सत्य का रास्ता बहुत अकेला रास्ता है। लोग सोचते हैं, अकेले का अर्थ है पहाड़ पर चले जाना। लोग सोचते हैं, अकेले का अर्थ है घर-द्वार छोड़ देना। अकेले का अर्थ है, भीड़ का साथ छोड़ देना। भीड़ से मुक्त हो जाए तो आदमी अकेला हो जाए। जिज्ञासा साहस की बात है और साहस शर्त है सत्य को पाने की। जिनमें साहस नहीं है वे जमीन पर ही रेंगते रहेंगे, आकाश में उड़ नहीं सकेंगे। जिनमें साहस नहीं है वे दूसरों के उधार सत्यों को ही ढोते रहेंगे, अपने सत्य की तलाश नहीं कर सकेंगे।
और जिसके पास अपना सत्य न हो, वह जीवित है? तो उसके जीवित होने का न कोई अर्थ है और न कोई अभिप्राय है और न ही यह उचित है कि हम उसे जीवित कहें। जब अपना सत्य होता है तो जीवन में प्रकाश हो जाता है, क्योंकि सत्य दीए की भांति सारे जीवन को आलोकित कर देता है। पहला सूत्र है: अपनी जिज्ञासा को जीवन से मुक्त कर लें, अपनी जिज्ञासा को संस्कार से मुक्त कर लें, अपनी जिज्ञासा को निजी कर लें, व्यक्तिगत कर लें, और सत्य को अपने और परमात्मा के बीच का संबंध समझें। उसमें आपका परिवार, आपका संप्रदाय, आपका परिवार कहीं भी नहीं आता है। और यह चित्त को मुक्त करके उसकी जंजीरों को तोड़ देने की पहली धारणा है।
- ओशो
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