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    चार स्मरण - ओशो

    Four Remembrance - Osho


     चार स्मरण - ओशो 

    सांझ को हम एक दीया जला देते हैं। सुबह हम कहते हैं कि वही दिया अब तक जल रहा है, उसे बुझा दें। झूठी बात हम कहते हैं। सांझ जो दीया जलाया था, वह त । कभी का बुझ गया। लौ हर क्षण बदलती जाती है। दूसरी लौ आ जाती है, पहली लौ बुझ जाती है। तीसरी आ जाती है, चौथी आ जाती है। इतनी तीव्रता से ज्यो त बुझती जा रही है, धुंआ होता जा रहा है। दूसरी ज्योति जलती आ रही है। सांझ जो ज्योति हमने जलाया, फिर सुबह हम उसी को नहीं बुझाते। रात भर ज्योति ब दलती रही, बदलती रही, रात भर ज्योति बदलती रही। वही ज्योति सुबह नहीं है।

            जो आप पैदा हुए थे, सब बदलता रहा है ज्योति की तरह जन्म से लेकर मृत्यु त क सब बदलता रहा है। इसी पूरी बदलाहट को बोध हो तो आपको पता नहीं चलेग [ कि मैं हूं। तो यह चार बोध-एक तो समय का विस्तार, एक आकाश का विस्तार, क्षण-क्षण परिवर्तन और अंतत: मृत्यू-इन चार पर जो मेडिटेट करता है, जो ध्यान करता है, वह उस परम अवस्था को उपलब्ध हो जाता है, जहां उसका पता चल जाता है जो काल से भी अनंत है और जो आकाश से भी विस्तीर्ण है और जिसकी कोई मृत्य नहीं और जिसमें कोई परिवर्तन नहीं। लेकिन इन चार के बोध से उसका पता चलत । है जो इन चारों से भिन्न और पृथक है। इन चारों के बोध से उसका क्यों पता चलता है? असल में पता चलने के लिए, कि सी भी चीज के ठीक-ठीक बोध के लिए, विपरीत की पृष्ठभूमि चाहिए। स्कूल में ह म बच्चों के लिए काले तख्ते, ब्लैकबोर्ड बना देते हैं। सफेद दीवाल पर भी, सफेद ख ड़िया से लिख सकते हैं। लेकिन तब बच्चे को कुछ दिखाई न पड़ेगा और अगर सफे द खड़िया से सफेद दीवाल पर कोई शिक्षक लिखता हो तो हम कहेंगे पागल है। ब्लैकबोर्ड हम बना देते हैं और सफेद खड़िया से उस पर लिखते हैं, क्योंकि काले की  पृष्ठभूमि में सफेद की रेखाएं उभर कर स्पष्ट हो आती हैं। 

            अगर हमें उसे खोजना ह ो जो अनंत है और असीम है, उसे खोजना हो जिसमें कोई परिवर्तन कभी नहीं होत I, उसे खोजना हो जिसकी कभी मृत्यु नहीं होती, उसे खोजना हो जिसकी कभी मृत्यू नहीं, उसे खोजना हो जो शाश्वत है, उसे खोजना हो जो सत्य है तो हमें सका बोध, उसकी पृष्ठभूमि खड़ी करनी होगी जो कि निरंतर परिवर्तन में है, जो कि निरंतर मर रहा है। उसका बोध है, उसके काले तख्ते पर, वह जो बिलकुल भिन्न औ र विपरीत है, उसकी सफेद रेखाएं उभर आएगी और दिखाई पड़ जाएंगी। जितनी अंधेरी रात होती है, तारे उतने ही चमकदार दिखाई पड़ते हैं। तारे तो दिन में भी रहते हैं, लेकिन वे दिखायी नहीं पड़ते। तारों को देखने के लिए रात की प्रतीक्षा क रनी पड़ती है, क्योंकि दिन की रोशनी में तारों के दिखाई पड़ने की कोई जगह नहीं रह जाती। लेकिन रात के अंधकार में वे चमकने लगते हैं, वे अलग दिखाई पड़ने लगते हैं।

            तो ये चार स्मरण जितने प्रगाढ़ हो जाएंगे, उतना ही उन चारों से जो भिन्न है, ज ो नानटेम्पोरल है, जो नानस्पेशियल है, जो न समय के भीतर है और न स्थान के भ तर है, जो अनचेंजिंग है, अनमूविंग है, जो न बदलता है और न परिवर्तित होता है, जो अनडाइंग है, जिसकी कभी कोई मृत्यु नहीं होती, उसका अनुभव, उसकी प्र तीति, उसका साक्षात हो सकता है। उसके लिए यह तैयारी करनी अत्यंत आवश्यक है। और जिस दिन उसका अनुभव होता है, उसी दिन जीवन वस्तुत: जीवन बनता है। उसी दिन जीवन आलोक से मंडित होता है, उसी दिन जीवन समस्त बंधनों से शून्य और रिक्त हो जाता है। उसी दिन हम उसे जान पाते हैं, जिसको जान लेने के बाद फिर कुछ जानना और पाना शेष नहीं रह जाता। वही है उपलब्धि, उसी की दिशा में, उसी सागर की खोज में, हम सबके जीवन की नदियां बही जाती है।

    - ओशो 

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