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    जितना धन, उतनी ही ताकत धन छोड़ने की कम हो जाती है - ओशो

    The more money, the less the power to give up money - Osho


     जितना धन, उतनी ही ताकत धन छोड़ने की कम हो जाती है - ओशो 

    मैं जयपुर में था, कल रात ही बात कर रहा था। एक बूढ़े आदमी ने आकर बहुत-से बंडल रखे नोटों के और कार किया। मैंने कहा, नमस्कार मैं ले लेता हैं और रुपए की अभी जरूरत नहीं है, कभी जरूरत होगी तो मैं मांगने निकलूंगा तो आपसे मांग लूंगा। रुपया आप रख लें, अभी तो मुझे कोई जरूरत है नहीं। मैंने तो ऐसे ही कह दिया, लेकिन देखा तो उनकी आंखों में आंसू आ गए हैं। वे सत्तर साल के बूढ़े आदमी हैं। उन्होंने कहा कि आप कहते क्या हैं! आपको जरूरत है, इसलिए मैंने दिया कब! मेरे पास है, अब मैं इसका क्या करूं? अच्छे आदमियों को दे देता हूं कि इसका कुछ हो जाएगा। मैं तो इसका कुछ कर नहीं सकता। आपको जरूरत है इसलिए मैंने दिया ही नहीं, इसलिए आपकी जरूरत का सवाल नहीं है; मेरे पास है, मैं क्या करूं? मुझे देना जरूरी है। और मैं अच्छे आदमियों को दे देता हूं कि इसका कुछ अच्छा हो जाएगा।

            और फिर उस बूढे आदमी ने कहा कि आपको पता नहीं, आप इनकार करके मुझे कितना सदमा पहुंचा रहे हैं। मैं इतना गरीब आदमी हूं कि मेरे पास सिवाय रुपए के और कुछ है ही नहीं। मैं इतना गरीब आदमी हूं कि मेरे पास सिवाय रुपए के और कुछ है ही नहीं! तो जब कोई रुपया लेने से इनकार कर देता है तो फिर मेरी मुश्किल हो जाती है, फिर अब मैं क्या करूं! मेरे मन में कुछ करने का खयाल आता है, तो सिवाय रुपए के मेरे पास कुछ भी नहीं है। तो आप इसको इनकार न करें। आप इसको फेंक दें, आग लगा दें, बाकी इनकार आपको नहीं करने दूंगा, क्योंकि फिर मेरे पास देने को कुछ और है ही नहीं--और देने का मेरे मन में खयाल आ गया है। आप कृपा करें और इसको ले लें। इसलिए पैसे के लिए तो चिंता आप नहीं करें बहुत। और जिस दिन भी आपको लगे कि आपको पैसे की जरूरत है और वह आपसे नहीं होता है, आप सिर्फ मुझे कह देंगे, पैसा हो जाएगा। पैसे की बहुत चिंता नहीं है। वह मैं नहीं मांगता हूं, यह बात दूसरी है। लेकिन जिस दिन मांगूं तो पैसा! पैसे जैसी सस्ती चीज और दुनिया में कुछ भी नहीं है; जो कोई भी दे देगा। पैसा देने में कोई भी आदमी इतना कमजोर नहीं है कि पैसा न दे दे। आदमी तो दिल दे देता है, प्राण दे देता है, पैसे में तो कुछ भी नहीं है। तो इसलिए उसकी बहुत चिंता की बात नहीं है। और हिम्मत से काम में लग जाएं तो आप पाएंगे कि वह काम अपने आप लेता चला आता है। वह अपने आप लेता चला आता है। अब मुझे जगह-जगह लोग, न मालूम कितने लोग आकर कहते हैं कि हमें दस हजार रुपए लगा देने हैं। मैं उनको क्या कहूं? कहां लगा दें? मेरे पास तो कोई जरूरत है नहीं। अब मैं कहां ले जाऊं? इन रुपयों का मैं क्या करूंगा? तो वे कहते हैं कि कभी जरूरत हो तो, कोई काम हो तो! लोग, आप सोचते होंगे कि इसलिए नहीं देते कि नहीं देना चाहते। 

            आप हैरान होंगे, मेरा अपना अनुभव यह है कि लोग संकोच में रहते हैं कि हम कैसे कहें कि पैसा दें। मेरा अपना अनुभव यही है कि लोग संकोच में होते हैं कि हम कैसे कहें, किस मुंह से कहें! पैसे जैसी सड़ी चीज को देने के लिए किस मुंह से कहें कि हम पैसा देना चाहते हैं। जिस दिन उनको पता चल जाए कि जरूरत है, तो पैसा बहा चला आता है, उसकी कोई कठिनाई नहीं है। उसकी जरा भी चिंता की बात नहीं है। उससे ज्यादा व्यर्थ तो कोई चिंता नहीं है, अगर उसके लिए बहुत चिंता करते हैं। लेकिन चिंता इसलिए पैदा होती है कि आप लाख-लाख का हिसाब लगाते हैं। जिस आदमी के पास लाख रुपया होता है, उस आदमी की उतनी ही ताकत पैसा छोड़ने की कम हो जाती है। जिसके पास एक रुपया होता है, उसकी ताकत छोड़ने की बहुत होती है।

    - ओशो 

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