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    सत्य की जो जिज्ञासा मात्र बौद्धिक ऊहापोह हो वो उसे पाने का साहस नहीं जुटा सकेंगे - ओशो

     

    The curiosity of truth which is mere intellectual exhaustion will not be able to muster the courage to find it - Osho

    सत्य की जो जिज्ञासा मात्र बौद्धिक ऊहापोह हो वो उसे पाने का साहस नहीं जुटा सकेंगे - ओशो 

    हम सारे लोग अत्यंत कमजोर हैं, हम सारे लोग अत्यंत दरिद्र हैं, हम सारे लोग अत्यंत शक्तिहीन हैं। और हमारी शक्तिहीनता और हमारी दरिद्रता और हमारे साहस की कमी इकट्ठी मिल कर हमारी गति को, हमारे ऊपर उठने को, हमारे ऊर्ध्वगमन को बंद कर देती है। यदि कुछ थोड़ा भी हम साहस जुटा पाएं, थोड़ा-सी शक्ति जुटा पाएं, थोड़ी हिम्मत कर सकें, तो गति संभव हो सकती है। और यह मैं आपको कहूं कि कोई कितना भी कमजोर हो, एक कदम उठाने की सामर्थ्य सब में है। हजार मील चलने की न हो, हिमालय चढ़ने की न हो, लेकिन एक कदम उठा लेने की सामर्थ्य सबके भीतर है। अगर हम थोड़ा-सा साहस जुटाएं तो एक कदम निश्चित ही उठा सकते हैं। 

            दूसरी बात आपसे यह कहूं कि जो एक कदम उठा सकता है वह हिमालय चढ़ सकता है, जो एक कदम उठा सकता है वह हजारों मील चल सकता है। क्योंकि इस जगत में एक कदम से ज्यादा चलने का कोई सवाल नहीं है। एक कदम से ज्यादा कभी कोई चलता भी नहीं। हमेशा एक कदम चला जाता है। गांधीजी अपने प्रार्थना गीतों में एक भजन गाया करते थे; उस भजन की एक पंक्ति है: वन स्टेप इज़ इनफ फॉर मी--एक ही कदम मेरे लिए काफी है। परमात्मा से प्रार्थना है कि मुझे एक ही कदम की शक्ति दे दे। एक कदम मेरे लिए काफी है। एक कदम सबके लिए काफी है। क्योंकि दो कदम कोई भी एक साथ नहीं उठा सकता है। एक ही कदम उठाने की सामर्थ्य जुटा लेने की बात है। और उतनी सामर्थ्य प्रत्येक में है, जो जीवित है; और उसे जुटाने की बात है।

            हमारा साहस, हमारी शक्ति, करीब-करीब बिखरी रहती है। उसे हम जुटा नहीं पाते हैं। उसे हम इकट्ठा नहीं कर पाते हैं। क्या उसे हम इकट्ठा इसलिए नहीं कर पाते कि सत्य की जिज्ञासा हमारे भीतर कभी प्यास नहीं बनती? वह एक बौद्धिक ऊहापोह रहती है? अधिक लोग हैं जो मुझसे पूछते हैं कि ईश्वर है? अधिक लोग हैं जो पूछते हैं कि आत्मा है? यदि मैं उनसे कहूं कि क्या तुम सौ कदम मेरे साथ चलने को राजी हो तब मैं उत्तर दूंगा, वे कहेंगे कि अभी मेरे पास फुर्सत नहीं है! अगर मैं उनसे कहं कि आप तीन दिन तक मेरे पास रुकने का धैर्य रख सकोगे तो मैं उत्तर दूं, शायद वे कहेंगे कि तीन दिन हमारे पास नहीं हैं। ईश्वर की, आत्मा की, सत्य की जो जिज्ञासा मात्र बौद्धिक ऊहापोह हो, मात्र एक बौद्धिक खुजलाहट हो, तो आप साहस को नहीं जुटा सकेंगे। साहस केवल वे ही जुटा पाते हैं जिनकी जिज्ञासा जिज्ञासा ही नहीं, अभीप्सा होती है, जिनकी जिज्ञासा प्यास होती है।

    - ओशो 

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