आदमी को भी जीने के लिए जगह चाहिए - ओशो
आदमी को भी जीने के लिए जगह चाहिए - ओशो
विलियम जेम्स अपनी जिंदगी में एक दफा पागलखाना देखने गया, फिर दोबारा गया नहीं। क्योंकि पागलखाने में देख कर उस बुद्धिमान आदमी को जो खयाल आया वह यह था कि ये सारे लोग पागल हो गए हैं। उसमें उसका कोई परिचित मित्र भी था जो कल तक बिलकुल ठीक था। लौट कर घर वह बिस्तर पर लग गया और उसने अपनी पत्नी से कहा कि अब मैं बहुत डर गया हूं। उसकी पत्नी ने कहा, क्या हो गया है तुम्हें? उसने कहा कि कल तक जो ठीक था, वह आज पागल हो गया है। मैं आज तक ठीक हूं, कल का क्या भरोसा है! और अपने को मैं यह नहीं समझा सकता कि वह बेचारा पागल हो गया है। क्योंकि कल तक वह भी अपने को समझाता रहा था कि कोई दूसरा बेचारा पागल हो गया है। नहीं, मैं डर गया हूं क्योंकि मेरे भीतर वह सब मौजूद मुझे मालूम पड़ता है जिसका विस्फोट हो जाए तो मैं पागल हो जाऊंगा।
हम सबके भीतर वह मौजूद है। कभी एकांत कोने में चले जाएं कमरे के, घर के द्वार बंद कर लें। कागज पर जो भी मन में चलता हो लिख डालें दस मिनट ईमानदारी से। किसी को बताना नहीं है, नहीं तो ईमानदारी न बरत पाएंगे। वह दूसरा आया कि आप बेईमान हुए। वह चाहे दूसरा आपकी पत्नी ही क्यों न हो, आपका बेटा ही क्यों न हो। दूसरे के सामने ईमानदार होना बहुत कठिन परीक्षा है। अपने ही सामने ईमानदार होना बहुत कठिन मामला है। दस मिनट दरवाजे पर ताला लगा लेना और लिखना जो भी मन में चल रहा हो दस मिनट; जो भी, उसमें कुछ हेर-फेर मत करना। तो दस मिनट के बाद उस कागज को आप किसी को दिखा न सकेंगे। और अगर दिखाएंगे तो कोई भी कहेगा, किस पागल ने लिखी हैं ये बातें? ये किसके दिमाग से निकली हैं?
और आप खुद ही हैरान होंगे कि यह सब मेरे भीतर चल रहा है! चारों तरफ तनाव घिर गया है। इस तनाव के बहुत परिणाम हैं। पहला परिणाम तो यह हुआ है कि सब तरफ कलह है, विग्रह है, कांफ्लिक्ट है। वर्ग के नाम से, धर्म के नाम से, संप्रदाय के, जाति के, भाषा के--इस सबके बहुत गहरे में मानसिक कलह हमारे भीतर है। वह फैल रही है, और वह बढ़ती जाएगी। संख्या बढ़ेगी, और वह बढ़ेगी, क्योंकि आदमी को भी जीने के लिए जगह चाहिए। वह जीने की जगह उसकी छिन गई है। हमने मौत रोक दी और जन्म को रोकने को हम तैयार नहीं हैं।
- ओशो
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