• Recent

    यहां मांगने वाला देने वाले से छोटा नहीं होता - ओशो

    Here the one who asks is not less than the giver - Osho


     यहां मांगने वाला देने वाले से छोटा नहीं होता - ओशो 

    इस मुल्क में, जहां कि भिखारियों की बड़ी परंपरा है। अगर आप नहीं कर सके तो मैं भिखारी बन सकता हूं; इसमें कोई कठिनाई नहीं है। यहां महावीर भिखारी हैं, यहां बुद्ध भिखारी हैं, यहां गांधी भिखारी हैं--यहां कोई तकलीफ नहीं है भिखारी होने में। यहां तो राजा होने में बड़ी तकलीफ है। यहां राजा होना बहुत निंदित है; बहुत दुष्कर्म है। यहां भिखारी होना तो इतने बड़े आदर की बात है जिसका कोई हिसाब नहीं। 

            गांधी देहरादून में थे एक बार। और रात जब सभा पूरी हुई तो उन्होंने कहा कि कोई भी आदमी बिना दिए नहीं जाएगा, कुछ न कुछ दे जाएगा। और वे दोनों हाथ लेकर भीड़ में उतर गए और कहा कि कोई भी, जिसके सामने भी मेरा हाथ जाता है, वह कुछ न कुछ दे। तो जिसको जो बन सका, जिसके पास जो था, वह दे दिया। हाथ भर गया। तो गांधी उसको वहीं गिरा देते जमीन पर और फिर हाथ खाली कर लेते। और कह देते कि यह मेरी संपत्ति जो पड़ी है, लोग खयाल लें, कहीं यहां-वहां गड़बड़ न हो जाए। वहां उस भीड़ में पच्चीसों बार हाथ भरा और उसको उन्होंने जमीन पर गिरा दिया। फिर वे तो गिरा कर चले गए और कार्यकर्ताओं को कह गए कि जमीन से बीन लाना। महावीर त्यागी उन कार्यकर्ताओं में एक थे। वह बीन-बान कर लाए। बहुत-से रुपए थे, बहुत-से गहने थे, रात एक बज गया वह सब बीनने में। लोगों के पैरों में यहां-वहां हो गया, वे सब जमीन पर फेंक गए थे उस भीड़ में। रात को सब हिसाब हुआ। वहां पहुंचे तो देखा गांधी जागे हुए हैं। उन्होंने कहा, सब हिसाब ले आए? उन्होंने सब हिसाब दिया, इतने हजार रुपए हुए हैं, यह-यह इतना हुआ है। एक औरत के कान का एक ही बुंदा था। गांधी ने कहा, दूसरा बुंदा कहां है? कोई औरत मुझे एक बुदा देगी, यह तुम खयाल कर सकते हो? तुम वापस जाओ, एक बुंदा और होना चाहिए, क्योंकि मैं मांगने खड़ा हो जाऊंगा तो कोई औरत ऐसी हो सकती है हमारे मुल्क में कि वह एक कान का बुंदा दे दे और एक घर ले जाए! यह बिलकुल संभव नहीं है। इसमें गलती तुम्हारी होगी। तुम जाओ; दसरा बंदा वहां हो वहां होना चाहिए। महावीर त्यागी ने पीछे कहा कि हम इतने घबड़ाए कि यह बूढ़ा आदमी है कैसा! एक तो वहां डाल दिया, यह सब उपद्रव किया और अब हम इतनी रात बीन-बान कर लाए हैं अंधेरे में और कहता है कि एक बुंदा इसमें कम है! वापस गए। वहां तो हैरान हुए, एक बुंदा ही नहीं मिला और कुछ गहने भी मिले! वह बुंदा तो मिल गया। गांधी ने कहा, मैं मान ही नहीं सकता था कि इस मुल्क में मैं मांगने जाऊं तो एक बुंदा कोई दे दे; दोनों ही देगी। तो इसलिए वह तो कमी थी। यह तुम और भी ले आए, कल सुबह और देख लेना गौर से, वहां कुछ और भी...।

            तो जिस मुल्क में मांगने वालों की बहुत बड़ी परंपरा हो। और इस मुल्क का बड़ा मजा है, और वह मजा यह है कि यहां मांगने वाला देने वाले से छोटा नहीं होता। यहां मांगने वाला देने वाले से छोटा नहीं होता, यहां मांगने वाला देने वाले से बड़ा ही रहता है। और धन्यवाद मांगने वाला नहीं देता कि धन्यवाद दे कि आपने मुझे इतना दिया, मैं धन्यवाद दूं। धन्यवाद देने वाला ही देता है कि मैं धन्यवाद करता हूं कि आपने ले लिया, नहीं लेते तो मैं क्या करता।

    - ओशो 

    कोई टिप्पणी नहीं