पहले प्यास को सजग करें, तब परमात्मा को खोजने निकलें - ओशो
पहले प्यास को सजग करें, तब परमात्मा को खोजने निकलें - ओशो
शीरी का आपने नाम सुना होगा, फरहाद और शीरी का। शीरी ने फरहाद से पूछा कि तुम मुझे प्रेम करते हो? फरहाद ने कहा कि अगर कहूंगा तो क्या विश्वास होगा? कैसे विश्वास दिलाऊं? शीरी ने कहा कि गांव के पीछे जो पहाड़ है उसको खोद कर अलग कर दो। फरहाद ने फावड़ा उठाया और पहाड़ पर चला गया। कहा जाता है कि उसने सूरज उगने से पहले पहाड़ को खोद कर फेंक दिया। यह बात तो काल्पनिक ही कही जा सकती है, सूरज उगने के पहले उसने पहाड़ को खोद कर फेंक दिया। लेकिन यह बात काल्पनिक हो तो भी सच है। जिनके भीतर प्यास हो और प्रेम हो, उनके लिए और भी कम समय में पहाड़ खोद कर फेंका जा सकता है।
असल में पहाड़ है ही इसलिए क्योंकि हमारे अंदर प्यास नहीं है। प्यास हो तो पहाड़ मिट जाता है। रास्ते पर जो भी अड़चनें हैं वे इसलिए हैं कि हमारे भीतर प्यास नहीं है। हमारे भीतर प्यास की जलती अग्नि हो तो रास्ता सीधा और राजपथ हो जाता है। सारी कठिनाइयां दूर हट जाती हैं, क्योंकि कठिनाइयों का अनुपात वही होता है जो हमारी कमजोरी का अनुपात है। जितनी शक्ति इकट्ठी हो उतनी कमजोरी टूट जाती है और मार्ग की बाधाएं नष्ट हो जाती हैं। जिनकी केवल जिज्ञासा है वे केवल ज्यादा से ज्यादा तत्व-चर्चा को उपलब्ध हो सकते हैं, तत्व-साक्षात को नहीं।
पूरब और पश्चिम का यही फर्क है। पश्चिम ने भी दो-ढाई हजार वर्षों में साहित्य का अनुसंधान किया है, लेकिन वे फिलासफी के ऊपर नहीं जा सके, वे रियलाइजेशन पर नहीं जा सके। उन्होंने तत्व-चिंतन तो किया, लेकिन वे केवल जिज्ञासाएं मात्र थीं, अभीप्साएं नहीं थीं। वे कोई ऐसी बातें नहीं थीं जिन पर वे अपने प्राण को न्योछावर कर सकें और समर्पित कर सकें। वे कोई ऐसी तलाश और खोजें नहीं थीं कि वहां वे अपने जीवन के मूल्य चुकाने को राजी हों। और जो मनुष्य सत्य के ऊपर किसी और चीज को रखता है वह यह समझ ले, अभी उसकी प्यास नहीं जगी और समय नहीं आया।
आप अपने भीतर निर्णय करें और विचार करें कि क्या परमात्मा को या सत्य को, जो भी है जगत में उसको खोजने के लिए, जो भी भीतर है उसको खोजने के लिए प्यास का जागरण शुरू हो गया है? यदि जागरण शुरू नहीं हुआ तो उसके पहले खोज में लग जाना व्यर्थ होगा। तब बेहतर है कि पहले प्यास को सजग करने की चेष्टा करें और फिर तलाश में लगें। बहुत-से लोग बिना प्यासे हुए खोजने चले जाते हैं। वे जीवन भर दौड़ते हैं, उन्हें कुछ मिलता नहीं है।
- ओशो
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