• Recent

    हम बूढ़े हो जाते हैं पर हमारी आंखें बंद रहती हैं - ओशो

    We get old but our eyes remain closed - Osho

    हम बूढ़े हो जाते हैं पर हमारी आंखें बंद रहती हैं - ओशो 

    बुद्ध का जन्म हुआ तो ज्योतिषियों ने बुद्ध के पिता से कहा कि यह बच्चा बड़ा होकर या तो चक्रवर्ती या संन्यासी हो जाएगा। सारे घर में रुदन हो गया, सारे घर में घबराहट फैल गई। एक ही पुत्र हुआ था, बहुत प्रतीक्षा के बाद हआ था, और वह भी संन्यासी हो जाएगा! तो बुद्ध के पिता ने पूछा, क्या रास्ता है कि उसे संन्यासी होने से रोक सकू? क्या मार्ग है कि यह संन्यासी होने से रुक जाए? हम अपनी सारी शक्ति लगा देंगे। ज्योतिषियों ने और विचारशील लोगों ने कहा, एक ही मार्ग है, इसकी आंखें न खुलने पाएं। अजीब उन्होंने बात कही: इसकी आंखें न खुलने पाएं, फिर आंखें खुली तो कोई भी आदमी संन्यासी हुए बिना नहीं रह सकता। आंख न खुलने पाए, यह कैसे होगा? उन्होंने मार्ग बताया, वैसी व्यवस्था की गई। व्यवस्था तीन बातों की की गई: बुद्ध को जगत में किसी तरह का दुख दिखाई न पड़े; बुद्ध को जगत में किसी भांति की जरा, मरण, मृत्यु दिखाई न पड़े; बुद्ध को जगत में विचार करने का मौका न आने पाए। 

            ये तीन व्यवस्थाएं की गईं। ये तीन व्यवस्थाएं आप भी किए हुए होंगे। हर आदमी अपने लिए किए हुए है। दुख दिखाई न पड़े, मृत्यु दिखाई न पड़े, और विचार का मौका न आने पाए। विचारशील लोगों ने कहा, ऐसा करें, इतना भोग में लगा दें, इतना व्यस्त कर दें कि विचार करने का मौका न आ पाए। जो जितना भोग में व्यस्त होगा, विचार करने का मौका कम पैदा होता है। जो जितना निरंतर सुबह से शाम तक लगा रहेगा उसे विचार करने का मौका कम पैदा होता है। भोग के बीच अंतराल हो तो विचार पैदा होता है। तो उनके पिता ने ऐसी व्यवस्था की कि संगीत में, शराब में, स्त्रियों में, वैभव में सुबह से शाम रात आ जाए, उसे मौका न मिले सोचने का। ऐसे मकानों में उन्हें रखा गया कि कोई कुम्हलाया हुआ फूल बुद्ध नहीं देख पाएं। कुम्हलाए फूल रात में अलग कर दिए जाते थे। कोई कुम्हलाया हुआ पौधा न देख पाएं। वह जहां रहते थे वहां कोई वृद्ध व्यक्ति न जा पाए, कोई बीमार न जा पाए, ऐसी व्यवस्था थी। किसी तरह की रुग्णता का उन्हें पता न चले। जीवन में सुख ही सुख है, फूल ही फूल हैं, कोई कांटा नहीं है। बुद्ध युवा हुए तब तक उनकी आंखें बंद रहीं।

            हम में से बहुत-से बूढ़े हो जाते हैं तब तक आंखें बंद रहती हैं। एक दिन वह गांव से निकले एक महोत्सव में, युवक महोत्सव में भाग लेने को। रास्ते में पहली दफा कहा जाता है कि उन्होंने एक वृद्ध को देखा। बुद्ध ने अपने सारथी से पूछा, इस व्यक्ति को क्या हो गया है?

            जिसने अब तक कोई बूढ़ा न देखा हो, स्वाभाविक था वह पूछे कि इस व्यक्ति को क्या हो गया है। अगर मुझसे बुद्ध के पिता ने पूछा होता कि मैं क्या करूं तो मैं कहता कि बचपन से जो भी दुख हैं, पीड़ाएं हैं, इसे देखने दें। यह उनका आदी हो जाएगा। जिन्होंने बुद्ध के पिता को सलाह दी वह सलाह गलत हो गई। चूंकि युवा होने तक कोई बूढा नहीं देखा था। इसलिए जब एकदम से बूढा देखा तो आंख खुल गई। वे आदी नहीं थे, वह हैबिट न हो पाई थी देखने की। और जो उनके पिता ने समझा था रुकने का कारण, वही आज जाने का कारण हो गया। देखा बूढे को तो बुद्ध ने पूछा, यह क्या हो गया? सारथी ने कहा, यह आदमी बूढा हो गया है। बुद्ध ने पूछा, क्या हर आदमी बूढा हो जाता है? सारथी ने कहा, हर आदमी बूढा हो जाता है। बुद्ध ने पूछा कि क्या मैं भी? सारथी ने कहा, कोई भी अपवाद नहीं है। बुद्ध ने कहा, रथ को वापस लौटा लो, युवक महोत्सव में जाने का क्या प्रयोजन? यह देखना आंख खोल कर देखना है। बुद्ध ने तीन प्रश्न पूछे: इस आदमी को क्या हुआ है? क्या हर आदमी को ऐसा हो जाएगा? क्या मुझे भी ऐसा हो जाएगा? सारथी ने कहा, कोई भी अपवाद नहीं है, आप भी बूढे हो जाएंगे। बुद्ध ने कहा, मैं बूढा हो गया, । रथ वापस लौटा लो। 

            और मार्ग में उन्होंने एक मृतक की लाश देखी। लोग उसके शव को लिए जाते हैं। और बुद्ध ने पूछा, यह क्या हुआ? क्या यह हर आदमी को होगा? क्या यह मुझे भी होगा? सारथी ने कहा, मैं कैसे कहूं? लेकिन जो जन्मता है उसको मरना होता है। रथ वापस करो, मैं मर गया। यह देखना है। यह आंख खोल कर देखना है। अगर कोई आंख खोल कर देखे तो हर मरते हुए आदमी में अपनी मृत्यु को देखेगा। अगर कोई आंख बंद करके देखेगा तो यह देखेगा कि वह आदमी मर रहा है, मैं मरूंगा यह उसे खयाल नहीं आएगा। रोज हम मरते हुए देखते हैं, लेकिन आंख बंद है कि लोग तो मरते हैं लेकिन अपनी मौत दिखाई नहीं पड़ती। जीवन में आंख खोल कर देखने की बात है। जो भी आप देख रहे हैं, विचार कर लें, समझ लें जो कि चारों ओर हो रहा है, आप उसके हिस्से हैं, और वह आपके साथ होगा।

    - ओशो 

    कोई टिप्पणी नहीं