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    कुछ भी नहीं होने का बोध - ओशो

     

    The feeling of being nothing - Osho

    कुछ भी नहीं होने का बोध - ओशो 

    यह बोध हमारा गहरे से गहरा हो जाना चाहिए। यह बोध हमारा निरंतर तीव्र से तीव्र होते जाना चाहिए कि कुछ भी नहीं हूं। जिंदगी को हम ऐसे देखेंगे तो हमको दिखाई पड़ जाएगा कि मैं कुछ भी नहीं हूं।

            यह दिखाई पड़ने में कौन सी कठिनाई है? मृत्यु रोज इसकी खबर लाती है कि ह म कुछ भी हनी हैं। लेकिन हम मृत्यू को कभी गौर से देखते नहीं कि वह क्या खब र लाती है? मृत्यु को तो हमने छिपा कर रख दिया है। मरघट गांव के बाहर बना दिया है, ताकि दिखाई न पड़े। किसी दिन आदमी समझदार होगा, धार्मिक होगा त । मरघट बिलकुल गांव के चौरस्ते पर बनाएं जाएंगे। रोज दिन में दस दफा, निकल ते, जाते-आते, दिखाई पड़े मौत तो खयाल में आए कि मौत है। अभी कोई लाश निकलती है मुर्दा निकलता है, बच्चों को हम घर के भीतर बुला ले ते हैं कि कोई मूर्दा निकल रहा है, भीतर आ जाओ। मुर्दा निकले और हम मग सम झ हो तो सब बच्चों को बाहर इकट्ठा कर लेना चाहिए कि देखा यह आदमी मर ग या और ठीक ऐसे ही हम सब मर जाने को हैं। हमारे ना कुछ होने का बोध, जिस बात से भी कुछ गहरा होता हो, जिस बात से भी तीव्र होता हो, वह सारी प्रक्रिया एं हमारे जीवन में वास्तविक धर्म के जन्म का, सत्य के जन्म का, प्रकाश के जन्म का कारण बनती हैं।

    - ओशो

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