• Recent

    अहंकार की खोपड़ी - ओशो

    Ego's Skull - Osho


    अहंकार की खोपड़ी - ओशो 

    वांग्त्से का शायद आपने नाम सुना होगा। एक अदभुत फकीर था। एक गांव से गुजर रहा था। गांव के बाहर, सांझ का समय था, अंधेरा था, एक आदमी की खोपड़ी से उसका पैर टकरा गया। मरघट था। उसने खोपड़ी को उठाकर, सिर पर लगा लि या और खोपड़ी को घर ले आया, अपने झोपड़े पर रख लिया। उसके मित्रों ने, उस के शिष्यों ने उससे पूछा कि इस खोपड़ी को यहां किसलिए ले आए हो? उस च्वागत से ने कहा, मुझसे बड़ी भूल हो गयी है। मरघट से मैं जा रहा था और वह छोटे लोगों का मरघट न था, बड़े लोगों का मरघट था। मरघट भी अलग-अलग होते हैं, छोटे  आदमियों के अलग, बड़े आदमियों के अलग, जिंदगी में, छोटे और बड़े तो अलग होते ही हैं, मृत्यु में भी हम फर्क कर लेते है, यह सम्राटों का मरघट है, यह दरिद्रों का मरघट है! 

            उसने कहा, वह बड़े लोगों का मरघट था। यह किसी बड़े आदमी की खोपड़ी होनी चाहिए। हो सकता है, यह किसी सम्राट की खोपड़ी हो। अगर यह आदमी जिंदा होता तो आज मेरी मुश्किल हो जाती। इसकी खोपड़ी में मेरा पैर लग गया कुछ भी हो, मर गया, फिर भी माफी तो मांग ही लेनी चाहिए। बड़े आदमी की खोपड़ी है, इसलिए इसको मैं ले आया, सम्मान से घर में रखेंगा। रोज माफी मांग लूंगा और फिर च्यांग्त्से ने कहा कि यह खोपड़ी यहां पास रखी रहेगी तो मुझे यह खयाल बना रहेगा कि आज नहीं कल, मेरी खोपड़ी की भी यही गति हो जाने वाली है। आज नहीं कल, किसी मरघट पर मेरी खोपड़ी पड़ी रहेगी और लोगों के जूते और लात उस पर लगते रहेंगे। जिस खोपड़ी के लिए मैं इतने सम्मान की अपेक्षा करता हूं, कल वह मिट्टी में मिल जाने को है। यह सत्य मुझे खयाल में बना रहेगा, इसलिए इस खोपड़ी को मैं पास ही रखूगा, और जिस दिन से इस खोपड़ी को मैंने अपने पास रखा, अगर अब कोई जिंदा भी मेरी खोपड़ी में आकर लात मार दे तो मैं ही उससे माफी मांग लूंगा कि आपके पैर को चोट तो नहीं लग गयी है, क्यो कि यह लात तो लगनी ही है कल । मैं कब तक बचाऊंगा यह खोपड़ी, कल लातों में चली जाने को है।

    - ओशो

    कोई टिप्पणी नहीं