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    आदमी की बेईमानी बहुत पुरानी है - ओशो

     
    Man's dishonesty is very old - Osho

    आदमी की बेईमानी बहुत पुरानी है - ओशो 

    बंगाली में एक उपन्यास है। उस उपन्यास में एक परिवार बद्री-केदार की यात्रा को गया है। बंगाली गृहिणी, उसका परिवार है। बंगाली गृहिणी भक्त है, एक संन्यासी भी रास्ते में साथ हो लिया है। बंगाली गृहिणी खाना बनाती है तो पहले संन्यासी को खिलाती है फिर पति को। स्वभावतः, मेहमान भी है संन्यासी भी है। और जोजो अच्छा है पहले संन्यासी को, रास्ते का मामला है। संन्यासी इतना खा जाता है कि बाकी के लिए फिर समझो बचा-खुचा ही रह जाता है। पति बहुत परेशान है। असल में पति और पत्नी के बीच अगर संन्यासी खड़ा हो जाए तो पति सदा ही परेशान हो जाता है। उसकी समझ में भी नहीं पड़ता कि क्या हो रहा है और पत्नी की दहशत की वजह से कह भी नहीं सकता कि क्या हो रहा है। सब मंदिर पति चला रहे हैं, वाया पत्नी। सब साधु-संत पति पाल रहे हैं, वाया पत्नी। पत्नी वहां जा रही है तो वह सब पल रहा है। 

            तो वह संन्यासी सब खा जाता है। फिर पीछे से कोई यात्री आया है और 'संदेश' लाया है, बंगाली मिठाई लाया है। पति बहुत डरा हुआ है, वह बड़ा शौकीन है संदेश का। वह कहता है कि बचेगी थोड़े ही, वह तो संन्यासी सब पहले ही साफ कर जाएगा। दूसरे दिन वह बड़ा भयभीत है। संदेश रखे गए, संन्यासी सब साफ कर गया। उसने कहा, रोटी आज रहने दो। वह सब संदेश खा गया। अब पति को इतनी मुश्किल हुई कि एक संदेश भी नहीं बचा। तो उसने संन्यासी से कहा, आप हम पर खयाल न करें तो कम से कम अपने पर तो खयाल करें। उस संन्यासी ने कहा कि तु नास्तिक है। अरे जिसने पेट दिया वही खयाल करेगा, हम परमात्मा के बीच में बाधा नहीं आते। संन्यासी ने कहा, जिसने पेट दिया है वही खयाल भी करेगा, हम बीच में बाधा डालने वाले कौन? संदेश संन्यासी डालेगा, बाधा नहीं डालेगा वह परमात्मा पर छोड़ देगा। आदमी की बेईमानी बहुत पुरानी है। इस मामले में बहुत महंगी पड़ेगी, जनसंख्या के मामले में बहुत महंगी पड़ेगी। साफ समझ लेना जरूरी है कि बच्चे रोकना ही पड़ेंगे अगर पूरी मनुष्यता को बचाना है। अन्यथा आपके बढ़ते बच्चों के साथ पूरी मनुष्यता का अंत हो सकता है।

    - ओशो 

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