जीवन सतत परिवर्तन - ओशो
जीवन सतत परिवर्तन - ओशो
बुद्ध ने अपने भिक्षुओं से कहते थे कि जाकर कभी-कभी मरघट पर बैठा करो। एक भिक्षु ने उनसे पूछा कि मरघट पर किसलिए तो बुद्ध ने कहते, वहां जीवन अपनी पू र्णता को उपलब्ध होता है।तुम भी उसी तरफ रोज चले जा रहे हो, उसका शायद तुम्हें वहां खयाल आए। जब वहां चिता चलती हो तो बैठ कर देखा करो, शायद ि कसी दिन तुम्हें दिखाई पड़ जाए कि चिता पर कोई और नहीं, तुम्हीं चढ़े हुए हो। थोड़े देरी होगी। आज कोई और चढ़ा है, कल मैं चढूंगा, परसों कोई और चढ़ेगा। तो शायद किसी दिन चिता को देखकर तुम्हें खयाल आ जाए कि कोई और नहीं, तुम्हीं चढ़े हुए हो। तो भिक्षुओं से अनिवार्य रूप से वह कहते थे कि मृत्यु के संबंध में वे ध्यान करें।
दूसरी बात, जीवन के सतत परिवर्तन कल मैं कुछ और था, आज मैं कुछ और हूं , परसो में बच्चा था, आज जवान हूँ, कल बूढ़ा हो जाऊंगा। एक दिन में नहीं था और एक दिन मैं फिर नहीं हो जाऊंगा यह जो फ्लक्स, यह जो धारा है निरंतर प रवर्तन की, वह हेराक्लत तो कहता था एक ही नदी में दुबारा नहीं उतर सकते। ज ब तक हम दुबारा उतरने जाते हैं, नदी बह गयी होती है। जब तक हम दुबारा उत रने जाते हैं तब तक हम बदल गए होत हैं। एक ही नदी में दुबारा हनीं उतर सक ते। हेराक्लत से कोई मिलने आता और जब जाने लगता तो हेराक्लतू उससे कहता, मेरे मित्र! खयाल रखना, तुम जो आए थे, वही वापस नहीं लौट रहे हो और तुम जिससे मिले थे, अब आकर उसी से विदा नहीं ले रहे हो। तुम भी बदल गए, मैं भी बदल गया। चौबीस घंटे, सब बदल जाता है। वहां कुछ भी स्थिर नहीं है।
- ओशो
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