मैं हूं, यही अहंकार है, यही आत्मा है - ओशो
मैं हूं, यही अहंकार है, यही आत्मा है - ओशो
एडिंगटन ने एक बार मजाक में यह कहा कि भाषा के कुछ शब्द बिलकुल ही झूठे हैं। आक्सफोर्ड में वह बोलता था तो किसी ने पूछा कि जैसे तो उसने कहा, रेस्ट। रेस्ट बिलकुल झूठा शब्द है। कोई चीज ठहरी हुई है ही नहीं। सारी चीजें बदलती जा रही है। कोई चीज स्थिर नहीं है। कोई चीज ठहरी हुई नहीं है, कोई चीज चढ़ी हुई नहीं है। जिसको आप खड़ा हुआ देख रहे हैं, वह भी खड़ा हुआ नहीं है, उसके भीतर भी सब भागा जा रहा है। ये दीवाले मकानों की आपको खड़ी दिखाई पड़ रह ी हैं, ये दरख्त आपको ठहरे हुए मालूम पड़ रहे हैं, यह बिलकुल झूठी बात है। यह दरख्त ठहरा हुआ नहीं है। नहीं तो यह दरख्त कभी बूढ़ा नहीं हो पाएगा। यह भागा जा रहा है भीतर। यह बूढ़ा होता चला जा रहा है। यह दीवाल ठहरी हुई नहीं है, यह भीतर बदलती जा रही है। नहीं तो यह मकान कभी गिर नहीं पाएगा। सब बदल रहा है। इस बदलाहट का पूरा बोध अगर आपको है तो आपको यह पता नहीं चलेगा कि मैं हूं, क्योंकि जहां सब बदल रहा है, वहां मैं के खड़े होने की जगह कह । है? जहां कोई चीज खड़ी नहीं है, जहां सब फ्लक्स है, जहां सब प्रवाह है, वहां मैं कहां हूं?
इसलिए बुद्ध ने तो एक बहुत बड़ी अदभुत बात कहनी शुरू की थी। उन होंने कहा था, आत्मा है ही नहीं, क्योंकि आत्मा के लिए खड़े होने की जगह कहा है? लोग नहीं समझ पाए कि यह क्या बात उन्होंने कहीं और बुद्ध आत्मा और अहंकार का एक ही अर्थ करते थे। वह कहते, इस बात का भाव कि मैं हूं, यही अहंक पर है, यही आत्मा है। अगर सब कुछ बदल रहा है तो मैं खड़े होने के लिए कहां जगह पाऊंगा? मेरे स्थिर होने की कहां गुंजाइश है?
- ओशो
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