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    संतति नियमन नीति-अनीति से कहीं बड़ा प्रश्न है - ओशो

     

    Child regulation is a bigger question than policy - Osho

    संतति नियमन नीति-अनीति से कहीं बड़ा प्रश्न है - ओशो 

    गांधी जी खिलाफ थे संतति-नियमन के और उन्होंने जिंदगी में जितनी गलत बातें कही हैं उसमें यह सबसे ज्यादा गलत बात है। वे संतति-नियमन के खिलाफ थे। वे कहते थे, बर्थ कंट्रोल से अनीति बढ़ जाएगी। उनको इसकी फिक्र नहीं है कि बर्थ कंट्रोल नहीं हुआ तो मनुष्यता मर जाएगी, उनको फिक्र इसकी है कि बर्थ कंट्रोल से कहीं अनीति न बढ़ जाए। कहीं ऐसा न हो कि कोई क्वांरी लड़की किसी लड़के से संबंध रखे और पता न चल पाए। 

            पता चलाने की किसी को जरूरत क्या है? यह पीपिंग टाम की प्रवृत्ति बड़ी खतरनाक है। पता चलाने की जरूरत क्या है? यह अनैतिक है यह पता चलाने की इच्छा ही। पड़ोस की लड़की का किस से क्या संबंध है, अगर कोई आदमी उसमें उत्सुक होकर पता लगाता फिर रहा है तो यह आदमी अनैतिक है। यह अनैतिक इसलिए है कि यह दूसरे आदमी की जिंदगी में तनाव पैदा करने की कोशिश में लगा है। इसे प्रयोजन क्या है? लेकिन पुराना सब नीतिवादी इसमें उत्सुक था कि कौन क्या कर रहा है। वह सबके घरों के आस-पास घूमता रहता है। पुराना महात्मा जो है वह हर आदमी का पता लगाता फिरता है कि कौन क्या कर रहा है। मनुष्यता मर जाए, इसकी फिक्र नहीं, महात्मा को इस बात की फिक्र है कि कहीं कोई अनीति न हो जाए। हालांकि महात्मा की फिक्र से अनीति रुकी नहीं है। 

            गांधी जी के आश्रम में भी वही होता जो कहीं भी हो रहा है। होता था; होगा ही। ठीक गांधीजी की आंख के नीचे वही होगा; उसमें कुछ फर्क पड़ने वाला नहीं है। क्योंकि जिसे हम अनीति कह रहे हैं अगर वह स्वभाव के विपरीत है तो स्वभाव बचेगा और अनीति नहीं बचेगी। और अनीति क्या है? कभी हमने नहीं सोचा कि एक स्त्री को दस बच्चे पैदा होते हैं तो उसकी पूरी जिंदगी बर्बाद हो जाती है। इसको हमने अनीति नहीं माना। हमने तो कहा कि स्त्री का तो काम ही मां होना है। मां होने का मतलब हमने समझा है कि मां होने की फैक्ट्री होना है। तो उससे फैक्ट्री का काम हमने लिया है। अगर हम पुरानी स्त्री की आज से चालीस साल पहले की, और आज भी गांवों में स्त्री की जिंदगी एक फैक्ट्री की जिंदगी है, जो हर साल एक बच्चा दे जाती है और फिर दूसरे बच्चे की तैयारी में लग जाती है। जो हम मर्गी के साथ कर रहे हैं वह हम स्त्री के साथ भी किए हैं। लेकिन यह अनीति नहीं थी। 

            एक आदमी अगर बीस बच्चे अपनी पत्नी से पैदा करे तो दुनिया का कोई भी ग्रंथ और कोई भी महात्मा नहीं कहता कि यह आदमी अनैतिक है। यह आदमी अनैतिक है। इसने एक स्त्री की हत्या कर दी। उसके व्यक्तित्व में कुछ न बचा, वह सिर्फ एक फैक्ट्री रह गई। लेकिन यह अनैतिक नहीं है। यह अनैतिक नहीं है। अनैतिक हम न मालूम क्या, किस चीज को बनाए हए हैं। और वे समझाएंगे--गांधी जी, विनोबा जी--वे कहेंगे कि नहीं, ब्रह्मचर्य साधो। अब ये पांच हजार साल से ब्रह्मचर्य की शिक्षा दे रहे हैं और इनके ब्रह्मचर्य की शिक्षा वे अभी भी दिए जाते हैं। वे कहते हैं, संतति-नियमन नहीं; हां, ब्रह्मचर्य साधो। और वह ब्रह्मचर्य कोई एकाध साधता हो, साध लेता हो, तो भी वह कोई मेजर नहीं है, उससे कुछ होने वाला नहीं है। 

            यह प्रश्न इतना बड़ा है! यह प्रश्न इतना बड़ा है कि इस प्रश्न को ब्रह्मचर्य से हल नहीं किया जा सकता। पांच हजार साल सबूत हैं, गवाह हैं, कि पांच हजार साल से शिक्षक समझा-समझा कर मर गए, कितने ब्रह्मचारी तुम पैदा कर पाए हो? गांधी जी भी चालीस-पचास साल मेहनत किए, कितने ब्रह्मचारी पैदा कर गए हैं? सच तो यह है कि खुद के ब्रह्मचर्य पर भी उन्हें कभी भरोसा नहीं था, आखिरी वक्त तक भरोसा नहीं था। कहते थे, जागते में तो मेरा काबू हो गया है, लेकिन नींद में लौट आता है। लौट ही आएगा। जागने में जो काबू करेगा उसका लौटेगा ही। उसमें और कोई कसूर नहीं है। कसूर खुद का है। दिन भर संभाले हैं तो नींद में संभालना शिथिल हो जाता है। तो नींद में, जो दिन भर नहीं किया है, वह नींद में करना पड़ता है। और नींद में करने से दिन में करना बेहतर है, कम से कम नींद तो खराब नहीं होती। ब्रह्मचर्य से चाहते हैं कि संख्या का अवरोध हो जाएगा--नहीं होगा। साधु-संत यह भी समझा रहे हैं कि तुम हकदार नहीं हो, परमात्मा बच्चे भेजता है तुम रोकने के हकदार नहीं हो। और यही साधु-संत अस्पताल चलाते हैं! परमात्मा बीमारी भेजता है, उसको क्यों रोकते हैं? और परमात्मा मौत भेजता है तो अस्पताल क्यों भागते हो ?

     - ओशो 

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