• Recent

    भगवान का स्मरण हो सकता है, भगवान का नाम स्मरण नहीं हो सकता - ओशो

     
    God can be remembered, God's name cannot be remembered - Osho


    भगवान का स्मरण हो सकता है, भगवान का नाम स्मरण नहीं हो सकता - ओशो 

    एक आदमी रोज सुबह बैठ कर भगवान का नाम ले लेता है। निश्चित ही, बहुत जल्दी में उसे नाम लेने पड़ते हैं, क्योंकि और बहुत काम हैं। और भगवान के लायक फुर्सत किसी के पास नहीं है। बहुत जल्दी में, एक जरूरी काम है, वह भगवान के नाम लेकर निपटा देता है और चल पड़ता है। और कभी उसने अपने से नहीं पूछा कि जिस भगवान को मैं जानता नहीं, उस भगवान के नाम का मुझे कैसे पता है? मैं क्या दोहरा रहा हूं? __ मैं भगवान का नाम दोहरा रहा हूं? भगवान का स्मरण हो सकता है, भगवान का नाम स्मरण नहीं हो सकता, क्योंकि भगवान का कोई नाम नहीं है। भगवान की प्यास हो सकती है, भगवान को पाने की तीव्र आकांक्षा हो सकती है, लेकिन भगवान का नाम स्मरण नहीं हो सकता। क्योंकि नाम उसका कोई भी नहीं है। 

            एक आदमी बैठ कर राम-राम दोहरा रहा है, दूसरा आदमी जिनेंद्र-जिनेंद्र कर रहा है, तीसरा आदमी नमो बुद्धाय, और कोई चौथा आदमी कुछ और नाम ले रहा है। ये सब नाम हमारी अपनी ईजादें हैं। इन नामों से परमात्मा का क्या संबंध है? परमात्मा का कोई नाम नहीं है। जब तक हम नाम दोहरा रहे हैं, तब तक हमारा परमात्मा से कोई संबंध न होगा। हम आदमी के जगत के भीतर चल रहे हैं। हम मनुष्य की भाषा के भीतर यात्रा कर रहे हैं। और वहां जहां मनुष्य की सारी भाषा बंद हो जाती है, सारे शब्द खो जाते हैं, वहां हम किन नामों को लेकर जाएंगे? सब नाम आदमियों के दिए हुए हैं। सच तो यह है कि आदमी खुद भी बिना नाम के पैदा होता है। आदमी के नाम भी सब झूठे हैं, कामचलाऊ हैं, यूटिलिटेरियन हैं, उनका सत्य से कोई भी संबंध नहीं है। 

            हम जब पैदा होते हैं तो बिना नाम के, और जब हम मृत्यु में प्रविष्ट होते हैं तब फिर बिना नाम के। बीच में नाम का थोड़ासा संबंध हम पैदा कर लेते हैं और उस नाम को हम मान लेते हैं कि यह हमारा होना है। हमने अपने लिए। नाम देकर एक धोखा पैदा किया है। वहां तक ठीक था, आदमी क्षमा किया जा सकता था। उसने भगवान को भी नाम दे दिए! और नाम देने से एक तरकीब मिल गई उसे कि उस नाम को वह दोहरा लेता है दस मिनट और सोचता है कि मैंने परमात्मा का स्मरण किया। नाम से परमात्मा का कोई भी संबंध नहीं है। आप बैठ कर कुर्सी, कुर्सी, कुर्सी दोहरा लें दस मिनट; दरवाजा, दरवाजा, दरवाजा दोहरा लें; पत्थर, पत्थर दोहरा लें; या आप कोई और नाम लेकर दोहरा लें, इस शब्द से कोई भी धर्म का संबंध नहीं है। शब्दों को दोहराने से धर्म का कोई संबंध नहीं है। धर्म का संबंध है निःशब्द से, धर्म का संबंध है मौन से, धर्म का संबंध है परिपूर्ण भीतर जब विचार शून्य हो जाते हैं और शांत हो जाते हैं तब, तब धर्म की यात्रा शुरू होती है। और एक आदमी बैठ कर रिपीट कर लेता है एक नाम को; राम, राम, राम, राम दस-पांच दफा कहा और उससे निपटारा हो गया, उसने भगवान को स्मरण कर लिया।

    - ओशो 

    कोई टिप्पणी नहीं