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    किसी और के पीछे चलना आत्महत्या है - ओशो

    Following someone else is suicide - Osho

     किसी और के पीछे चलना आत्महत्या है - ओशो 

    कर्म और आचरण के संबंध में संदेह कब उपस्थित होता है? जब कर्म और आचरण उधार होता है तभी संदेह उपस्थित होता है। अगर कर्म और आचरण तुम्हारी अपनी अनुभूति, अपनी प्रज्ञा, अपने बोध से जन्मा हो तो कैसा संदेह? असल में अगर तुम्हारे ध्यान से ही बहा हो तो संदेह असंभव है। क्योंकि संदेह को छोड़ कर ही तो ध्यान उत्पन्न होता है। फिर संदेह कहां? संदेह कैसा? जब स्वयं के प्रकाश में कोई चलता है तो कोई संदेह नहीं होता। मैंने तो इधर पच्चीसत्तीस वर्षों में कोई संदेह नहीं जाना। खोजता हूं बहुत, एकाध मिल जाए, नहीं पाता हूं। सब तरफ से देख डाला, सब तरफ से छान डाला, कोई संदेह दिखाई नहीं पड़ता।

            यूं समझो कि जैसे तुम दीया जला कर अंधेरे को खोजने निकलो तो कैसे मिलेगा? दीया जला कर अंधेरे को खोजने निकलोगे तो दीया हाथ में होगा तो अंधेरा रहेगा कैसे? जिसके भीतर का दीया जला है, उसके भीतर के सब अंधेरे मिट जाते हैं। संदेह तो अंधेरा है। सूत्र कहता है: 'यदि कभी आपको अपने कर्म या आचरण के संबंध में संदेह उपस्थित हो...।' इससे जाहिर है कि कर्म और आचरण उधार होगा, बासा होगा। किसी और को देख कर तुम चलने लगे होओगे। किसी और की चाल चलोगे तो मुसीबत खड़ी होगी। किसी और का जीवन अगर तुमने आदर्श बना लिया तो तुम जगह-जगह संदेह से भरोगे। क्योंकि तुम्हारी निजता विद्रोह करेगी, बगावत करेगी कि यह तुम क्या कर रहे हो? क्यों तुम आत्महत्या कर रहे हो? 

            किसी और के पीछे चलना आत्महत्या है। किसी पहाड़ से गिर कर मर जाना केवल शरीर-हत्या है, आत्महत्या नहीं। उसके लिए आत्महत्या शब्द का उपयोग करना उचित नहीं। जहर खाकर मर जाना शरीर-हत्या है। गर्दन काट कर मर जाना शरीर-हत्या है, आत्महत्या नहीं। और शरीर के मरने से कोई मरता है? न हन्यते हन्यमाने शरीरे! कृष्ण कहते हैं: नहीं कोई मरता। शरीर मर जाए, इससे मृत्यु नहीं होती। लेकिन दूसरे का आचरण आधार बना लो तो यह आत्महत्या है। यूं तुम जीओगे, मगर उधार जीओगे। पैर तुम्हारे अपने न होंगे, किसी और के पैर से चलोगे। आंखें तुम्हारी अपनी न होंगी, किसी और की आंखों से देखोगे। कर्म तुम करोगे, लेकिन भीतर भरोसा नहीं हो सकता कि मैं ठीक कर रहा हूं या गलत; क्योंकि भीतर से वह कर्म आया नहीं, तुम्हारी श्रद्धा से उपजा नहीं, तुम्हारे बोध से जन्मा नहीं।

    - ओशो 

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