हम जिंदगी के असली प्रश्न नहीं पूछते हैं - ओशो
हम जिंदगी के असली प्रश्न नहीं पूछते हैं - ओशो
मैं कलकत्ता में एक मीटिंग में बोलता था। एक सज्जन ने ब्रह्मचर्य पर एक किताब ि लखी है। बड़ी किताब लिखी है, बड़ी प्रशंसित हुई। उन्होंने मुझे किताब भेंट की। ले कन ब्रह्मचर्य पर मैंने कहा, जैसी मेरी अपनी धारणा थी। उनको कुछ प्रश्न पूछने थे, लेकिन बड़ी मुसीबत में पड़ गए। वे खड़े होकर बोले, मेरे एक मित्र हैं, वह ब्रह्मच र्य साधना चाहते हैं। लेकिन उनसे सधता नहीं। तो क्या करें? मैंने उनसे पूछा, वह मित्र हैं आपके कि आप ही हैं। पहले मैं यह समझ लूं। वह बहु त घबड़ा गए। बोल, नहीं, मेरे एक मित्र हैं। मैंने कहा, मित्र की फिकर छेड़िए, उ न मित्र को लाइए। रास्ता जरूर है, लेकिन उन मित्र को ले आइए, क्योंकि मैं आप को समझाऊं, आप उनको समझाएं तो बड़ा गड़बड़ हो जाएगा। आप मित्र को ले आ इए, मैं उनको समझा दूंगा। वह बड़े बेचैन हुए, जब मैं चला आया। उन्होंने मुझे चिट्ठी लिखी कि क्षमा करें, तक लीफ मेरी है। लेकिन मैं साहस नहीं कर सकता पूछने का।
तो मैंने उनको लिखा कि साहस आप कर सकते थे, अगर वह ब्रह्मचर्य की आपने किताब न लिखी होती। व ह दिक्कत हो गयी न, वह जो एक किताब लिखी है, एक प्रतिमा हो गयी है कि मैं जो कि इतना जानने वाला ब्रह्मचर्य का हूं तो मैं पूछं किसी से तो कोई कहेगा अरे ! आपको साधने की, आपको खुद भी दिक्कत है? यह जो तकलीफ है, मैं साधुओं से मिलता हूं, साधु मुझसे सबके सामने बात नहीं क रना चाहते। भीड़ में हों तो मुझसे मिलना नहीं चाहते। चाहते हैं एकांत में, अलग में उनसे मिलूं, क्योंकि उनकी तकलीफें वही हैं, जो कि सबके सामने नहीं कह सक ते हैं। अकेले में वह मुझसे यही पूछते हैं कि ब्रह्मचर्य कैसे सधे ? चित्त अशांत रहता है, चित्त में क्रोध आता है तो क्या करें? यह अगर सबके सामने मुझसे पूछेगे तो वह जो प्रतिमा अपनी उन्होंने खड़ी कर रखी है, चारों तरफ कि वे बड़े शांत चित्त हैं, वे बड़े मुश्किल में पड़ जाएंगे, क्योंकि वे पूछते हैं कि अशांति कैसे मिटे तो लोग समझेंगे, अभी शांत चित्त नहीं हुए।
जिंदगी के असली प्रश्न हम पूछते ही नहीं और नकली। प्रश्न पूछे चले जाते हैं। मेरा जोर इसी बात पर है कि जिंदगी के असली प्रश्न पकड़ें । मुसीबत क्या है? मेरी दिक्कत क्या है ? मैं कहां उलझा हूं? मैं कहां परेशान हूं? मेरा दुख कहां है? उसको केंद्रित करें, उसको पकड़े। उसके बाबत सोचें। उसके बात विधि को समझें। उस पर प्रयोग में लग जाए। और बड़े मजे की बात यह है कि इ स भांति जो प्रयोग में लगेगा, वह हो सकता है, एकदम से ऐसा भी न दिखे कि धा र्मिक है, क्योंकि न आत्मा की बात करता है, न परमात्मा की बात करता है, न पुनर्जन्म की बात करता है। लेकिन बड़े रहस्य की बात यह है कि इस भांति जो जिंदगी को पकड़कर काम में लग जाएगा, वह एक दिन उस जगह पहुंच जाएगा, जहां आत्मा और परमात्मा सब जान लिए जाते हैं। अभी कल रात जो मैंने कहा, वह मैंने यही कहा कि महावीर ने किसी से जाकर न ही पछा कि आत्मा है या नहीं, पुनर्जन्म है या नहीं। वह वहां बैठकर जंगल में क्या यह सोचते होंगे कि आत्मा है या नहीं? कभी यह सोचा आपने, क्या सोचते होंगे? यह बैठकर सोचते होंगे, आत्मा है या नहीं, पुनर्जन्म है या नहीं? नहीं, कुछ नहीं सचते।
क्रोध पर काम कर रहे हैं, सेक्स पर काम कर रहे हैं। काम इन पर चल रहा है। काम आत्मा वात्मा पर थोड़े ही चलता है। वह बारह वर्ष की तपश्चर्या है। का म किस पर कर रहे हैं? कोई आत्मा पर काम कर रहे हैं या कोई पुनर्जन्म का पत [ लगा रहे हैं? कि निगोद का पता लगा रहे हैं? कि अनादि जगत कब बना इसका पता लगा रहे हैं? वे कुछ नहीं पता लगा रहे हैं। काम कर रहे हैं क्रोध पर, काम कर रहे हैं सैक्स पर, काम कर रहे है लोभ पर। वहां काम कर रहे हैं। उसी काम के माध्यम से, एक दिन स्थिति आती है कि ये सब विसर्जित हो जाते हैं। यह सब जब विसर्जित हो जाते हैं तो उसका अनुभव होता है जो आत्मा है। बातचीत आतमा ही है, काम आत्मा पर नहीं करना है कुछ काम किसी और ही चीज पर करना है, पर आत्मा के बाबत पूछे चले जाएंगे। इसका कोई मतलब नहीं है।
कोई टिप्पणी नहीं