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    सत्य शास्त्रों में उपलब्ध नहीं हो सकता - ओशो

    Truth cannot be found in scriptures - Osho


     सत्य शास्त्रों में उपलब्ध नहीं हो सकता - ओशो 

    बहुत वर्ष हुए एक साधु मरण शैय्या पर था। उसकी मृत्यु निकट थी और उससे प्रेम करने वाले लोग उसके पास इकट्ठे हो गए थे। उस साधु की उम्र सौ वर्ष थी और ि पछले पचास वर्षों से, सैकड़ों लोगों ने उससे प्रार्थना की कि उसे जो अनुभव हुए हों, उन्हें एक शास्त्र में एक किताब में लिख दे। हजारों लोगों ने उससे यह निवेदन कि या था कि वह अपने आध्यात्मिक अनुभवों को, परमात्मा के संबंध में, सत्य के संबं ध में, उसे जो प्रतीतियां हुई हों, उन्हें एक ग्रंथ में लिख दें। लेकिन वह हमेशा इनक पर करता रहा था और आज सुबह उसने यह घोषणा की थी कि मैंने वह किताब लिख दी है, जिसकी मुझसे हमेशा मांग की गयी थी और आज मैं अपने प्रधान शिष्य को वह किताब भेंट कर दूंगा। हजारों लोग उत्सुक होकर बैठे थे कि किताब भेंट की जाएंगी, जो कि मनुष्य जाति के लिए, हमेशा के लिए काम की होगी। उसने एक किताब अपने प्रधान शिष्या को भेंट की और उससे कहा, इसे संभालकर रखना। इससे बहुमूल्य शास्त्र कभी भी लिखा नहीं गया है, इससे महत्वपूर्ण कभी कोई किताब नहीं लिखी गयी। और जो लोग सत्य की खोज में होंगे, उनके लिए यह मार्गदर्शक प्रदीप सिद्ध होगी। इसे बहुत संभाल कर रखना। इसे मैंने पूरे जीवन के अनुभव से लिखा है। 

            उसने वह किताब अपने शिष्य को दी और सारे लोगों ने धन्यवाद में सिर झुकाए| लेकिन उस शिष्य ने क्या किया? सर्दी के दिन थे और वहां आग जलती थी। उसने उस किताब को आग में डाल दिया आग ने उस किताब को पकड़ लिया और वह र खि, हो गयी। सारे लोग हैरान हो गए कि यह क्या किया। लेकिन लोग देखकर हैरा न हुए, पर वह मरता हुआ साधु अत्यंत प्रसन्न था। उसने उठकर उस शिष्य को गले लगा लिया और उससे कहा अगर तुम उस किताब को बचा कर रख लेते तो मैं बहुत दुखी होकर मरता, क्योंकि मैं समझता कि एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है मेरे पस, जो यह जानता है कि सत्य शास्त्रों में उपलब्ध नहीं हो सकता। तुमने किताब को आग में साल दिया, इससे मैं प्रसन्न हूं। कम से कम एक व्यक्ति मेरी बात समझ ता है। 

            यह बात कि सत्य शास्त्रों में उपलब्ध नहीं हो सकता, कम से कम एक के अनुभव में है। और उसने कहा यह भी स्मरण रखो कि अगर तुम उस किताब को आग में न डालते और मेरे मरने के बाद देखते तो बहुत हैरान हो जाते। उसमें कुछ लिखा हुआ भी नहीं था। कोरे कागज थे। और मैं आपसे कहूंगा, आज तक धर्मग्रंथों में कुछ भी लिखा हुआ नहीं है, वेद सब कोरे कागज हैं। जो लोग उनमें कुछ पढ़ लेते हैं, वे गलती में पड़ जाते हैं। जो जीत । में कुछ पढ़ लेगा या कुरान में कुछ पढ़ लेगा या बाइबिल में कुछ पढ़ लेगा, वह गलती में पड़ जाएगा। स्मरण रखना, उन शास्त्रों में कुछ भी लिखा हुआ नहीं है। और जो आप पढ़ रहे हैं, वह आप अपने को पढ़ रहे हैं, उन शास्त्रों को नहीं। 

     - ओशो 

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