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    हम सब स्वयं के अभिनय में पड़े हुए हैं - ओशो

    We are all busy acting on our own - Osho


    हम सब स्वयं के अभिनय में पड़े हुए हैं - ओशो 


            हम अपने भीतर एक चित्र बनाए हुए हैं अपना ही, बड़ा भव्य एक चित्र बनाए हुए हैं अपना ही। वह भव्य चित्र हमारा, हमें जीवनभर धोखा देता है। उसकी वजह से, हम अपने में कोई बुराई कभी स्वीकार नहीं कर पा ते, कोई गलती नहीं देख पाते, कोई दाग नहीं देख पाते। तो अपनी कल्पनाओं से, अपने भव्य चित्र को खंडित कर दें, उसे उठाकर फेंक दें। क्या मुझे होना चाहिए, इ सकी फिकर छोड़ दें। क्या मैं हूं, इसको जाने हम सब एक आदर्श से पीड़ित हैं और इसलिए एक अभिनय में पड़े हुए हैं। हम सब एक आदर्श कल्पना अपनी बनाए हुए हैं कि मैं कैसा आदमी हूं, मैं वैसा आदमी हूं। 

           वही कल्पना हमें धोखा दिए रहती है, क्योंकि उस कल्पना के कारण जब भी हममें कोई बुराई होती रहती है, क्योंकि उस कल्पना के कारण जब भी हममें कोई बुराई होती है हम मान नहीं सकते कि हममें है। हम समझते हैं, किसी और की वजह से हम में है। अभी मैं एक प्रोफेसर से बात कर रहा था। वह बोल. कछ क्रोध ऐसे होते हैं जो कि क्रोध हैं ही नहीं। वह बोल, बिलकुल ही ठीक क्रोध? मैंने कहा, क्रोध तो कोई ठी क नहीं हो सकता। इस शब्द से झूठा शब्द नहीं हो सकता। कोई क्रोध ठीक नहीं हो सकता, क्योंकि कोई अंधेरा कहे कि कुछ अंधेरे ऐसे होते हैं जो प्रकाश होते हैं, ना समझी की बात हो गयी। कुछ अंधे ऐसे होते हैं जिनको दीखता है, बिलकुल फिजूल की बात हो गयी। यह तो कोई मतलब की बात नहीं है। यह तो विरोधी शब्द हैं।

    - ओशो

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