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    दूसरे हो जाने का नाम ही संन्यासी है - ओशो

    The name of becoming another is a sannyasin - Osho


    दूसरे हो जाने का नाम ही संन्यासी है - ओशो 

    जो धर्म वीरों का था, वह वृद्धों को बना हुआ है। जो धर्म साहसियों का था, वह आलसियों का बना हुआ है। जिस धर्म पर केवल वे ही चढ़ते थे, जो पर्वतों में अकेले अपने को खो देने का साहस रखते हैं, जिन्हें मृत यु का कोई भय नहीं। लेकिन वह उनका बना हुआ है, जो मृत्यु से बहुत भयभीत हैं , बहुत डरे हुए हैं और धर्म में अपना बचाव खोजते हैं। धर्म कोई सुरक्षा नहीं है, धर्म कोई बचाव नहीं है। धर्म को इन अर्थों में शरण मत समझना। धर्म तो आक्रमण है। जो लोग आक्रमण करते हैं सत्य पर, जो उसे विजय करते हैं, वे ही केवल उ से उपलब्ध होते हैं। ईश्वर ऐसी सदबुद्धि दे, ऐसा साहस दे, ऐसी हिम्मत दे कि अनंत सागर में आप अपनी नाव को छोड़ सकें तो किसी दिन, किसी क्षण, किसी सौभाग्य के क्षण में, कोई अनुभूति आपके जीवन को उपलब्ध होगी, जो आपको परिपूर्ण बदल देगी। जो आपक सारी दृष्टि को बदल देगी। संसार तो यही होगा, लेकिन आप बदल जायेंगे। सबकुछ यही होगा, लेकिन आप दूसरे हो जायेंगे। उस दूसरे हो जाने का नाम ही संन्यासी है। 

            संन्यासी को अर्थ यह नहीं है कि जिसने कपड़े बदले और भीख मांगने लगा वह संन्यासी हो गया या किसी ने टीका लगाया और किसी ने कपड़े रंग लिये तो वह संन्यासी हो गया। और कोई घर में रहा तो वह गृहस्थ हो गया। संन्यासी का यह अर्थ नहीं है। सत्य के अनुसंधान में इतने साह स को लेकर जो कूद पड़ता है, वही संन्यासी है। और जिसके घरघूले हैं और जिसके खूटे हैं और जो अपने घर के बाहर नहीं निकलता, वही गृही है, वही गृहस्थ नहीं होता और न कोई पत्नी-बच्चों के न होने से संन्यासी होता है और न कोई कपड़ों के परिवर्तन से गृहस्थ होता है, न कोई संन्यासी होता है। अगर इन छोटी और ओ छी बातों से दुनिया में संन्यासी होता है तो उसका मूल्य दो कौड़ी का हो जायेगा। उसका कोई मूल्य नहीं रह जायेगा। 

    - ओशो 

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