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    जो थोड़े से लोग किसी के विचार को स्वीकार नहीं करते वे ही सत्य को अनुभव कर पाते हैं - ओशो

    Only a few people who do not accept someone's view can experience the truth - Osho


    जो थोड़े से लोग किसी के विचार को स्वीकार नहीं करते वे ही सत्य को अनुभव कर पाते हैं - ओशो 

    मैं अभी एक गांव में अपने एक मित्र के साथ गया था। बहुत धूप थी रास्ता बहुत गरम था। उनके जूते कहीं खो गए थे, कोई चुरा ले गया था। तो मैंने उनसे कहादूसरी चप्पल पहन लें-वे बोले-दूसरे की पहनी हुई चप्पलें मैं कैसे पहनूं? मैंने उनसे कहा, दूसरे के पहने हुए जूते कोई पहनना पसंद नहीं करता, दूसरे के पहने हुए क पड़े पहनना कोई पसंद नहीं करता, लेकिन दूसरों के अनुभव किए हुए विचार सारे लोग स्वीकार कर लेते हैं। दूसरों के उतारे कपड़े और दूसरों के बासी भोजन को क ई स्वीकार नहीं करेगा, लेकिन हम सारे लोगों रों के बासी विचार स्वीकार क र लिए हैं. फिर चाहे वे विचार बद्ध के हों. महावीर के हों. चाहे किसी के हों। या वे कितने ही पवित्र पुरुष के विचार क्यों न हों, अगर वे दूसरों के अनुभव हैं और उनको हमने स्वीकार कर लिया है तो हम स्वयं सत्य को जानने से वंचित हो जाएंगे

            इस जगत में केवल वे ही लोग, केवल वे ही थोड़े से लोग सत्य को अनुभव कर पा ते हैं, जो किसी के विचार को स्वीकार नहीं करते। जो किसी के उधार चिंतन को अंगीकार नहीं करते और जो अपने मन के आकाश को, अपने मन के चिंतन को मु क्त रख पाते हैं। बहुत कठिन है अपने चिंतन को मुक्त रख पाना। अगर आप अपने भीतर देखेंगे तो शायद ही एकाध विचार ऐसा मालूम होगा, जो आपका अपना हो। वे सब संगृहीत मालूम होंगे, वे सब दूसरों से लिए हुए मालूम होंगे। और ऐसी विचार शक्ति जो दू सरों के लिए हुए विचारों से दब जाती है, सत्य के अनुसंधान में समर्थन हो जाती है। कोई व्यक्ति दूसरों के जितने ज्यादा विचार स्वीकार कर लेता है, उतनी उसकी विचार शक्ति नीचे दब जाती है। जो व्यक्ति, जितना दुसरों के विचार अस्वीकार क र देता है, उतनी उसके भीतर की विचार शक्ति जाग्रत होती है और प्रबुद्ध होती है। सत्य पाने के लिए स्मरणीय है कि किसी का विचार, कितना ही सत्य क्यों न प्र तीत हो, अंगीकार के योग्य नहीं है।

     - ओशो

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