परमात्मा आनंद की चरम अनुभूति है -ओशो
परमात्मा आनंद की चरम अनुभूति है -ओशो
परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं है,जिसको आप खोज लेंगे। परमात्मा आनंद की चरम अ नुभूति है। उन अनुभूति में आप कृतार्थ हो जाते हैं और सारे जगत के प्रति आपके मन मग एक धन्यता का बोध हो जाता है। आप में कृतज्ञता पैदा होती है। उस कृत ज्ञता को ही मैं आस्तिकता कहता हूं। ईश्वर को मानने को नहीं, वरन अपने भीतर एक ऐसे आनंद को अनुभव करने को कि उस आनंद के कारण आप सारे जगत के प्रति कृतज्ञ हो जाए। वह जो कृतज्ञता का, वह जो ग्रेटीटयट का अनुभव है, वही और वही परम आस्तिक ता है। ऐसी आस्तिकता की खोज जो मनुष्य नहीं कर रहा है, वह अपने जीवन के अवसर को व्यर्थ खो रहा है। यह चिंतनीय और विचारणीय है और यह हर मनुष्य के सामने एक प्रश्न की तरह खड़ा हो जाना चाहिए। यह असंतोष, हर मनुष्य के भ तर पैदा होना चाहिए कि वह खोजे और जीवन को गंवा न दे।
लेकिन सारी दुनिया हम दो तरह के लोगों में बंट गयी है। एक तो वे लोग हैं जो । मानते ही हनीं कि कोई आत्मा है, कोई परमात्मा है। दूसरे वे लोग हैं जो मानते हैं कि परमात्मा है और आत्मा है। ऐसे दोनों प्रकार के लोगों ने खोजें बंद कर दी हैं। एक वर्ग ने स्वीकार कर लिया है कि परमात्मा नहीं है, आत्मा नहीं है, इसलिए खोज का कोई प्रश्न नहीं है। दूसरे वर्ग ने स्वीकार कर लिया है कि आत्मा है, परमा त्मा है, इसलिए उनके लिए भी खोज का कोई कारण नहीं रह गया। आस्तिक और नास्तिक दोनों ने खोज बंद कर दी है। विश्वासी भी खोज बंद कर देता है, अविश्व सी भी खोज बंद कर देता है।
खोज तो केवल वे लोग करते हैं जिनकी जिज्ञासा मुक्त होती है और जो किसी विश् वास से, किसी पंथ से, किसी विचार की पद्धति से, किसी आस्तिकता से, किसी ना स्तकता से अपने को बांध नहीं लेते। वे लोग धन्य हैं जिनकी जिज्ञासा मुक्त है। जिन का संदेह मुक्त हो, जो सोच रहे हों और जिन्होंने दूसरों के विचार को स्वीकार न कर लिया हो।
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