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    जो परमात्मा को मान लेते हैं, वे उसे कभी नहीं जान सकेंगे -ओशो

    Those who believe in God, they will never be able to know him - Osho


    जो परमात्मा को मान लेते हैं, वे उसे कभी नहीं जा न सकेंगे -ओशो 

    मैं आपसे यह कहता हूं कि जो परमात्मा को मान लेते हैं, वे कभी नहीं जा न सकेंगे। यह आपका दुर्भाग्य होगा कि आप परमात्मा को मानते हों, क्योंकि मानने को अर्थ यह हुआ कि आपने जिज्ञासा और खोज के द्वार बंद कर दिये। मानने का अर्थ यह हुआ कि अब आपकी कोई तलाश नहीं है, अब आपकी कोई खोज नहीं हैं, अब आपकी कोई इन्क्वायरी नहीं है। अब आप कुछ खोज नहीं रहे हैं, आप तो मा न कर बैठ गये, आप तो कर गये।

            श्रद्धा मृत्यु है। और संदेह जीवन है। संदेह खोज है। तो मैं आप से श्रद्धालु होने कोनहीं, मैं आप से संदेहवान होने को कहता हूं। लेकिन संदेह करने का यह मतलब मत समझ लेना कि मैं आपको ईश्वर को न मानने को कह रहा हूं, क्योंकि न मान ना भी मानने का एक रूप है। आस्तिक भी श्रद्धालु होता है, नास्तिक भी श्रद्धालु होता है। आस्तिक की श्रद्धा है कि ईश्वर है, नास्तिक की श्रद्धा है कि ईश्वर नहीं है। __ वे दोनों अज्ञानी हैं। इन दोनों की श्रद्धाएं हैं, इन दोनों की खोज नहीं है। संदेह तीसरी अवस्था है, आस्तिक और नास्तिक दोनों ही नहीं। संदेह तो स्वतंत्र चित्त की अ वस्था है। वैसा व्यक्ति निर्भय होकर पूछता है, क्या है ? और न वह परंपरा को मान ता है, न वह रूढ़ि को मानता है, न वह शास्त्र को मानता है। वह किसी दूसरे के दीये को अंगीकार नहीं करता। वह यही कहता है कि खोजूंगा अपने दीया। वही सा थी हो सकेगा। दूसरों के दीये कितनी देर तक, कितनी सीमा तक साथ दे सकते हैं और जीवन के इस रास्ते पर सच तो यह है कि अपने सिवाय, स्वयं के सिवाय कोई और साथी नहीं है। 

    -ओशो 

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