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    हर आदमी उन्हीं सींखचों को पकड़े बैठा है, जो उसके बंधन हैं - ओशो

    Aspiration-of-Virat-meets-and-is-holding-loud-petals-Osho


    आकांक्षा विराट के मिलन की, और पकड़े हुए हैं क्षुद्र सींखचों को जोर से

              मैंने सुना है, एक पहाड़ी सराय पर एक युवक एक रात मेहमान हुआ। जब वह पहा. डी में प्रवेश करता था तो घाटियां उसने किसी बड़ी अदभुत और मार्मिक अवाज से गूंजती हुई सुनी। घाटियां में कोई बड़े मार्मिक, बड़े आंसू भरे, बहूत प्राणों की पूर । ताकत से रोता और चिल्लाता था। यह आवाज गूंज रही थी घाटियों में स्वतंत्रता, स्वतंत्रता। वह हैरान हुआ कि कौन स्वतंत्रता का प्रेमी इन घाटियों में इतने जोर से आवाज करता होगा। लेकिन जब वह सराय के निकट पहुंचा तो आवाज और निकट सूनाई पड़ने लगी, शायद सराय से ही आवाज उठती थी। शायद कोई वहां बंदी था।

              उसने अपने घोड़े की रफ्तार आर तेज कर ली। वह सराय पर पहुंचा तो हैरान हो गया।यह किसी मनुष्य की आवाज न थी। सराय के द्वार पर पिंजड़े में एक तोत । बंद था और जोर से स्वतंत्रता-स्वतंत्रता चिल्ला रहा था। उस युवक को बड़ी दया आयी उस तोते पर। वह युवक भी अपने देश की आजादी की लड़ाइयों में बंद रहा था, कारागृहों में और वहां उसने अनुभव किया था, परतंत्रता का दुख। वहां उसने आकांक्षा अनुभव की थी, मुक्त आकाश की। वहां उसकी आकांक्षा ने, वहां उसके स वप्नों ने स्वतंत्रता के जाल गूंथे थे। आज उसे तोते की आवाज में अपनी उस सारी पीड़ा से कराहती हुई आत्मा का अनुभव हुआ, और सराय का मालिक अभी जागता था। सोचा उसने रात में इस तोते को स्वतंत्र कर दूं।

              राज जब सराय का मालिक सो गया, वह युवक उठा। उसने जाकर पिंजड़े का द्वार खोला। सोचा था स्वतंत्रता का प्रेमी तोता उड़ जाएगा, लेकिन द्वार खोलते ही तोते ने सींखचे पकड़ लिए पैरों से और जोर से चिल्लाने लगा-स्वतंत्रता, स्वतंत्रता, स्वतं त्रता। वह युवक हैरान हुआ। द्वार खुले थे, उड़ जाना चाहिए था, न उड़ जाने की कोई बात न थी। लेकिन शायद उसने सोचा, मुझसे भयभीत हो, इसलिए उसने हाथ भीतर डाला लेकिन तोते ने उसके हाथ पर चोट की। पिंजड़े के सीखचों को और जोर से पकड़ लिया। युवक ने यह सोचकर कि कहीं उसका मालिक न जाग जाए, चोट भी सही और किसी तरह बमुश्किल उस तोते को निकाल कर आकाश में उड़ा दिया।

               वह युवक बड़ी शांति से सो गया, एक आत्मा को स्वतंत्र करने का आनंद उसे अनु भव हुआ था। लेकिन सुबह, जब उसकी नींद खुली तो उसने देखा, तोता वापस आ ने पिंजड़े में आकर बैठ गया है। द्वार खुला पड़ा था, और तोता चिल्ला रहा है स्वतं त्रता, स्वतंत्रता, स्वतंत्रता। वह बहुत हैरान हुआ, वह बहूत ही मुश्किल में पड़ गया। यह आवाज कैसी, यह प्यास कैसी, यह आकांक्षा कैसी! यह तोता पागल तो नहीं है। वह तोते के पिंजड़े के पास खड़े होकर यही सोचता था कि सराय का मालिक व हां से निकला, और उसने कहा, बड़ा अजीब है तुम्हारा तोता। मैंने इसे मुक्त कर ि दया था, लेकिन यह तो वापस लौट आया। उस सराय के मालिक ने कहा, तुम पहले आदमी नहीं हो, जिसने इसे मुक्त किया हो। जो भी यात्री यहां ठहरता है, उसक आवाज के धोखे में आ जाता है। रात इसे मुक्त करने की कोशिश करता है। सूबह खुद ही हैरानी में पड़ जाता है, तोता वापस लौट आता है।

              उसने कहा, बड़ी अज ब तोता है तुम्हारा। उस बूढ़े मालिक ने कहा, तोता ही नहीं, हर आदमी इसी तर ह अजीब है। जीवन भर चिल्लाता है, मुक्ति चाहिए. स्वतंत्रता चाहिए और उन्हीं स 'खिचों को पकड़े बैठा रहता है, जो उसके बंधन हैं और उसके कारागृह हैं। मैंने जब यह बात सुनी तो मैं भी बहुत हैरान हुआ। फिर मैंने आदमी को बहुत गौर से देखने की कोशिश की, तो मैंने पाया कि जरूर यह बात सच है। आदमी का पिं जड़ा दिखायी नहीं पड़ता, यह दूसरी बात है, लेकिन हर आदमी उन पिंजड़े के सीखचों को पकड़े हुए हैं, यह भी बहुत ऊपर से दिखायी नहीं पड़ता, क्योंकि तोते का 'ि पजड़ा बहुत स्थूल है, आदमी का पिंजड़ा बहूत सूक्ष्म है। आंख एकदम से उसे नहीं दे ख पाती। लेकिन थोड़े ही गौर से देखने पर यह दिखायी पड़ जाती है कि हम एक ही साथ दोनों काम कर रहे हैं कि आकांक्षा कर रहे हैं मुक्ति की, आकांक्षा कर रहे हैं किसी विराट के मिलन की, और क्षुद्र सींखचों को इतने जोर से पकड़े हुए हैं कि हम उन्हें छोड़ने का नाम भी नहीं लेते। और कुछ लोग हैं, जो हमारे इस विरोधाभ स का हमारे इस कंट्राडेक्शन का, हमारे जीवन की इस बहुत अदभुत उलझन का फायदा उठा रहे हैं।

              तोते के ही मालिक नहीं होते. आदमी के भी मालिक हैं, और वे मालिक भली भांति जानते हैं कि आदमी जब तक पिंजड़े के भीतर बंद हैं, तभी तक उसका शोषण हो सकता है। तभी तक उसका एक्सप्लाइटेशन हो सकता है। जि स दिन वह पिंजड़े के बाहर हैं, उस दिन शोषण की कोई दीवाल, किसी भांति का शोषण संभव नहीं रह जाएगा। और सबसे गहरा शोषण जो आदमी का हो सकता है , वह उसकी बुद्धि के और उसके विचार का शोषण, उसकी आत्मा का शोषण है। दुनिया में उन लोगों ने, जिन्होंने आदमी के शरीर को कारागृह में डाला हो, उनका अनाचार बहुत बड़ा नहीं है। जिन्होंने आदमी के आसपास दीवालें खड़ी की छे, उन्हों ने कोई बहुत बड़ी परतंत्रता पैदा नहीं की। क्योंकि एक आदमी की देह भी बंद हो सकती है, कारागृह में और फिर भी हो सकता है कि वह आदमी बंदी न हो। उसक । आत्मा, दीवाली के बाहर उड़ान भरे, उसकी आत्मा सूरज के दूर पंथों पर यात्रा करें, उसके सपने दीवालों को अतिक्रमण कर जाए। देह बंद हो सकती है, और हो सकता है, भीतर जो बैठा हो, वह बंद न हो।

              जिन लोगों ने मनुष्य के शरीर के लिए कारागृह उत्पन्न किए, वे बहुत बड़े जेलर नहीं थे। लेकिन जिन्होंने मनुष्य की आत्मा के लिए सूक्ष्म कारागृह बनाए हैं, वे मनुष्य के बहूत गहरे में शोषक, मनुष्य के जीवन पर आने वाली चिंताओं, दुखों का बोझ डालने वाले. सबसे बड़े जिम्मेदार, वे ही लोग हैं। और वे लोग कौन है? जिन लोगों ने भी धर्म के नाम पर धर्मों को नि र्मित किया है, वे सभी लोग, जिन लोगों ने परमात्मा के नाम पर छोटे-छोटे मंदिर खड़े किए हैं और मस्जिद, और चर्च वे सभी लोग। जिन लोगों ने भी धर्म के नाम पर शास्त्र निर्मित किए हैं और दावा किया है, उन शास्त्रों में परमात्मा की वाणी होने को वे सभी लोग। वे सभी लोग, उन्होंने मनष्य के अंतस चित्त को बांध लेने की बड़ी सूक्ष्म ईजादें की हैं, वे सभी लोग।

    - ओशो 

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