यह मंदिर और मस्जिद कोई परमात्मा के मंदिर नहीं हैं
यह मंदिर और मस्जिद कोई परमात्मा के मंदिर नहीं हैं, परमात्मा का मंदिर तो तब सब जगह मौजूद है, क्योंकि जहां परमात्मा मौजूद है, वहां उसका मंदिर __ भी मौजूद है। आकाश के तारों में और जमीन के आसपास में और वृक्षों में, और मनुष्य की और पशुओं की आंखों में और सब तरफ और सब जगह कौन मौजूद है? किसका मंदिर मौजूद है? इतने बड़े मंदिर को, इतने विराट मंदिर को जो नहीं दे ख पाते, वे छोटे-छोटे मंदिर में उसे देख पाएंगे? खुद उसके ही बनाए हुए भवन में जो उसे नहीं खोज पाते, वे क्या आदमी के द्वार बनायी गयी ईंट चूने के मकानों में उसे खोज पाएंगे? जिनकी आंखें इतने बड़े को भी नहीं देख पातीं, जो इतने ओबिय स है, जो इतना प्रकट है और चारों तरफ मौजूद है, चेतना के इस सागर को भी जनका जीवन स्पर्श नहीं कर पाता, वह आदमी के बनाए हुए ईंटों की दीवालों, कार गृहों में, बंद मूर्तियों में उसे खोज पाएगा? नासमझी है, निपट नासमझी है। जो इत ने विराट मंदिर में नहीं देख पाता, वह उसे और कहीं भी देखने में समर्थ नहीं हो सकता।
- ओशो
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