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    दुखी आदमी के जीवन में एक ही सुख है कि वह किसी को दुख दे पाए - ओशो

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    दुखी आदमी के जीवन में एक ही सुख है कि वह किसी को दुख दे पाए 

              क्या आपको यह पता है, जब पहला महायुद्ध हुआ, तो मनोवैज्ञानिक बहुत परेशान हुए। पहला महायुद्ध जितने दिनों तक चला उतने दिन तक यूरोप में चोरियां कम ह ो गयी, हत्याएं कम हो गयी, आत्महत्याएं कम हो गयी, लोग कम पागल हुए। हैरा नी की बात है। मनोवैज्ञानिक समझ नहीं पाए कि इसका क्या कारण है? फिर महा युद्ध हुआ। तब तो और बड़े पैमाने पर यह हुआ। हत्याओं की संख्या एकदम कम ह ो गयी आत्महत्याओं की संख्या कम हो गयी। लोगों ने युद्ध के समय में पागल होना बंद कर दिया। कम। लोग पागल हुए। और क्यों? लोग इतने उत्साहित हो गए, लग इतने आनंदित हो गए कि उन्हें हत्या करने की जरूरत नहीं पड़ी, आत्महत्या क रने की जरूरत नहीं पड़ी। ऊब और बोर्डम कम हो गयी। उदासी कम हो गयी, लोग प्रफुल्लित थे।

              युद्ध ऐसी क्या प्रफुल्लता लाता है? अगर युद्ध इतनी प्रफुल्लता लाता है तो उसका अर्थ है, हमारे भीतर, हमारे मन में युद्ध की कहीं चाह होगी। हम कहीं चाहते होंगे | हमारे भीतर कहीं कोई आकांक्षा होगी, जिससे युद्ध पैदा होता है और अगर सतत युद्ध चलता रहे तो हम बहुत प्रसन्न हो जाएंगे। यह बात अपने खयाल से अप नि काल दें कि यूद्ध से आप उदास हो जाते हैं। आप खुद विचार करें-अभी हिंदस्तान में चीन और पाकिस्तान की लड़ाइयां चलीं, तो आप खयाल करें, आप ज्यादा प्रसन्न थे। आप ज्यादा प्रफुल्लित थे, आप ज्यादा ताजगी से भरे थे। आप खबरों के लिए बड़े आतुर थे। आपकी जिंदगी में एक रस मालूम हो रहा था। क्यों? कुछ कारण है।

              जो मनुष्य सामान्य जीवन से ऊबा हुआ है, वह मनुष्य युद्ध को चाहेगा, हिंसा को च हेगा। बोर्डम जो हमारे जीवन की है, रोज सुबह से सांझ तक हमारे जीवन में न त । कोई रस है, न तो कोई आनंद है, न कोई प्रसन्नता है। जब तक कोई संशेसनल,ज ब तक कि कोई बहुत तीव्र संवेदना करनेवाली बात न घट जाए, हमारे जीवन में क ई प्रफुल्लता, कोई जिंदगी नहीं आती। बर्नार्ड शा से किसी ने पूछा कि किस बात क ो आप समाचार कहते हैं, न्यूज किसे कहते हैं? बर्नार्ड शा ने कहा, अगर एक कुत्ता आदमी को काट खाए तो इसे में न्यूज नहीं कहता। लेकिन एक आदमी कुत्ते को क ट खाए तो इसे मैं न्यूज कहता हूं। इसे मैं समाचार कहता हूं, एक आदमी अगर कु ते को काट खाए।

              यह हमारी जिंदगी की जो ढीली-ढाली रफ्तार है. वह उसको चौंका देती है बात। हम चौंकाने के लिए उत्सुक है. हम चौंकाए जाएं। इसलिए डिटेक्टिव फिल्में हम देखते हैं, जासूसी उपन्यास और कथाएं पढ़ते हैं जिनमें हत्याओं का जोर हो। जिंदगी में भी युद्ध और लड़ाइयां चाहते हैं, संघर्ष और कलह चाहते हैं, ताकि हमारे भीतर व ह जो उदासी, ऊब जिंदगी में छा गयी है, वह टूट जाए। केवल वही मनुष्य का समा ज युद्ध से बच सकता है, जो मनुष्य का समाज अत्यधिक आनंदित और प्रफुल्लित हो। स्मरण रखें, अगर हम उदास हैं, दुखी हैं, रसहीन हमारा जीवन है तो हम भीत र अनजाने भी, अचेतन, अनकांसेस भी युद्ध के लिए तीव्र युद्ध के लिए प्यासे रहेंगे। हमारे भीतर कोई आग्रह कोई आकांक्षा बनी रहेगी कि जीवन को चौंका देने वाली कोई बातें हो जाए।

              युद्ध सबसे ज्यादा जीवन को चौंका देता है। इसलिए जीवन में एक लहर आ जाती है, एक गति आ जाती है। इसलिए सारी मनुष्य जाति बहुत गहरे में युद्ध से प्रेम करती है। युद्ध की आकांक्षा करती है। अभी हिंदुस्तान में जब चीन और पाकिस्तान से उपद्रव चला तो आपने देखा, हिंदुस्ता न भर में कविताएं लिखी जाने लगीं, की आंखों में रौनक और चेतना आ गयी। केसा पागलपन है। कैसे पागलपन है! हम कितने उत्साहित हो गए।

              हमारा नेता कितने जोर से बोलने लगा और हमारी तालियां कितनी जोर से पिटने लगी और हमारे प्राणों में जैसे गति और एक कंपन आ गया। ऐसा लगा जैसे सब मु र्दे जाग गए हो। यह सारी की सारी स्थिति यह बताती हैं कि सामान्य जीवन हमारा बहूत दूखी और बहूत पीड़ित है। और यह भी स्मरण रखें, अगर सामान्य रूपेण हम दुखी हैं तो जो आदमी दुखी होता है, वह आदमी दूसरे को दुख देने में आनंद अनूभव करता है। इ से मैं फिर से दोहराता हूं, जो आदमी दुखी होता है वह दूसरे को दुख दो में आनंद अनूभव करता है। जो आदमी आनंदित होता है वह दसरे को आनंद देने में आनंद अनुभव करता है। जो हमारे पास होता है, उस पे निर्भर होता है, हम दूसरे के साथ क्या करेंगे। चूंकि हम सारे लोग दुखी हैं, इसलिए हमारे जीवन में एक ही सुख है। कि  हम किसी को दुख दे पाए। इसलिए जब भी हम किसी को दुख देते हैं, सताते हैं, परेशान करते हैं तो हम सुख मिलता है।

    - ओशो 

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