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    शून्य ही द्वार है, मार्ग है, मंजिल है - ओशो

            

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     मेरे प्रिय, प्रेम। 

            सहारे मात्र वाधाएं हैं। सब सहारे छोड़ें, क्योंकि तभी उसका सहारा मिल सकता है। वह तो केवल वेसहारों को सहारा है। और उसके अतिरिक्त गुरु और कोई भी नहीं है। शेष सब गुरु उसके मार्ग में अवरोध हैं। गुरु को पाना हो तो गुरुओं से बचे। और शून्य होने से न डरे। क्योंकि वहीं द्वार है। वही मार्ग है। वही मंजिल है। शून्य होने का साहस ही पूर्ण होने की क्षमता है। जो भरे हैं, वे खाली रह जाते हैं।

            और जो खाली हैं, वे मर जाते हैं। ऐसा ही उसका गणित है। और कुछ करने की न सोचें। करने से वह नहीं मिलता है। न जप से, न पत से। क्योंकि वह तो मिला ही हुआ है। रुकें और देखें। करना ही दौड़ना है। न करना ही रुकना है। आह! काश! वह दूर होता तो दौड़कर मिल जाता। लेकिन, वह तो निकट से भी निकट है। काश! उसे खोया हो तो खोज भी लेते। लेकिन, उसे खोया ही कब है? 

    रजनीश के प्रणाम 
    १३-५-१९७० प्रति : श्री रमाकांत उपाध्याय, काठमांडू, नेपाल

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