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    प्रेम के आंसू - ओशो

    प्रेम के आंसू - ओशो Tears-of-love-osho


    प्रिय सोहन, स्नेह। 

             अभी अभी यहां पहुंचा हूं। गाड़ी ५ घंटे विलंब से पहुंची है। तुमने चाहा था कि पहुंचते ही पत्र लिखू इसलिए सब से पहले वही कर रहा हूं। रास्ते भर तुम्हारा स्मरण बना रहा, और तुम्हारी आंखों से ढलते आंसू दिखाई पड़ते र हे। आनंद और प्रेम के आंसुओं से पवित्र इस धरा पर और कुछ नहीं है। ऐसे आंसू ि कतने अपार्थिव होते हैं, और कितने पारदर्शी? वे निश्चय ही शरीर के हिस्से होते हैं, पर उनसे जो प्रकट होता है, वह शरीर का नहीं होता है। मैं तुम्हारे  इन आंसूओं के लिए क्या हूँ? माणिक बाबू को मेरा हार्दिक प्रेम कहना। अनिल और बच्चों को स्नेह । 


    रजनीश के प्रणाम
    १७-२-१९६५ (संध्या) प्रति : सुश्री सोहन बाफना, पूना

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