प्रेम के दो रूप : काम और करुणा - ओशो
मेरे प्रिय, प्रेम।
आपका पत्र मिल गया है। प्रेम और दया में बहुत भेद है। प्रेम में दया है। लेकिन दया में प्रेम नहीं है। इसलिए जो हो उसे हमें वैसा ही जानना चाहिए। प्रेम तो प्रेम। दया तो दया। एक को दूसरा समझना या समझाना व्यर्थ की चिंताओं को जन्म देता है। प्रेम साधारणत: असंभव हो गया है। क्योंकि मनुष्य जैसा है, वैसा ही वह प्रेम में नहीं हो सकता है। प्रेम में होने के लिए मन का पूर्णतया शून्य हो जाना आवश्यक है।
और हम मन से ही प्रेम कर रहे हैं। इसलिए हमारा प्रेम निम्नतम हो तो काम (एमग) होता है और श्रेष्ठतम हो तो करुण | (विउ,पवद) लेकिन प्रेम काम और करुणा दोनों की प्रतिक्रमण है। इसलिए जो है उसे समझें। और जो होने चाहिए, उसके लिए प्रयास न करें। जो है, उसकी स्वीकृति और समझ से, जो होना चाहिए, उसका जन्म होता है। लीना को प्रेम टूकन को आशीष।
रजनीश के प्रणाम
१५-२-१९७० प्रति : डा. एम. आर. गौतम, अध्यक्ष : संगीत विभाग हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस (उ . प्र.)
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